'संविधान पीठ का फैसला मानाने के लिए बाध्य है सरकार..', SC के पूर्व जज नरीमन का बयान
'संविधान पीठ का फैसला मानाने के लिए बाध्य है सरकार..', SC के पूर्व जज नरीमन का बयान
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नई दिल्ली: जजों की नियुक्ति को लेकर कॉलेजियम और केंद्र सरकार के बीच टकराव जारी है। सरकार द्वारा लगातार अनुशंसित नामों को खारिज करने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम उन्हीं नामों को जज बनाने के लिए भेज रहा है। हालाँकि, 11 दिन गुजर जाने के बाद भी केंद्र सरकार ने कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नामों को हरी झंडी नहीं दी है। वहीं, सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि कॉलेजियम के नामों को स्वीकार करने के लिए सरकार बाध्य है।

दरअसल, ये सरकार और कॉलेजियम का मुद्दा पाँच वकीलों के नाम को लेकर है, जिसे शीर्ष अदालत जज बनाने पर अड़ी हुई है, मगर सरकार इसके लिए राजी नहीं है। इसके लिए सरकार ने रॉ (R&AW) और इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) का भी हवाला दिया, मगर कॉलेजियम सरकार की दलील को मानने के लिए तैयार ही नहीं है। सरकार ने खुफिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि वकील सौरभ कृपाल को न्यायाधीश नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि वे समलैंगिक (Gay) हैं और उनका पार्टनर विदेशी है। सरकार ने कहा कि सौरभ कृपाल Gay अधिकारों को लेकर वे मुखर रहे हैं। ऐसे में उनके फैसलों में पूर्वाग्रह दिख सकता है।

कॉलेजियम जिन नामों को लगातार सरकार के पास भेज रहा है, इनमें सौरभ कृपाल भी शामिल हैं। कृपाल शीर्ष अदालत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीएन कृपाल के पुत्र हैं। इसके साथ ही, इस लिस्ट में अमितेष बनर्जी, शाक्य सेन, एस सुदरसन और आर जॉन साथ्यन शामिल हैं। अमितेष, न्यायमूर्ति यूसी बनर्जी के बेटे हैं। यूसी बनर्जी ने गोधरा ट्रेन अग्निकांड की जाँच की थी, जिसमे मुस्लिम भीड़ ने 59 हिन्दुओं को जिन्दा जला दिया था। जस्टिस बनर्जी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि ट्रेन जलाने में किसी किस्म की साजिश नहीं की गई। वहीं, शाक्य सेन इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व चीफ जस्टिस के बेटे हैं। सेन ने शारदा चिट फंड घोटाले की सुनवाई की थी।

कॉलेजियम द्वारा भेेजे गए इन नामों पर सरकार बार-बार आपत्ति दे रही है, मगर कॉलेजियम लगातार इन्हीं नामों को जज बनाने के लिए भेज रहा है। इसके देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश रोहिंटन एफ नरीमन ने कहा है कि कॉलेजियम सिस्टम की सिफारिशों पर सरकार द्वारा जवाब देने की समय-सीमा निर्धारित होनी चाहिए। नरीमन ने कहा कि शीर्ष अदालत को एक संविधान पीठ का गठन करना चाहिए। यह पीठ सरकार को कॉलेजियम की सिफारिश पर जवाब देने की 30 दिन की समय सीमा निर्धारित करेगी। वर्तमान में कॉलेजियम की अनुशंसा पर किसी आपत्ति की स्थिति में सरकार के जवाब देने की समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है।

न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि अगर एक बार कॉलेजियम द्वारा सरकार को नाम भेज दे और निर्धारित समय सीमा में सरकार कोई जवाब ना आए, तो मान लिया जाना चाहिए कि सरकार को कोई आपत्ति नहीं है। कानून मंत्री किरेन रिजिजू पर तंज कसते हुए न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि, 'एक बार 5 या उससे ज्यादा जजों ने संविधान की व्याख्या कर ली, तो यह अनुच्छेद 144 के तहत एक प्राधिकरण के तौर पर आपका कर्तव्य है कि आप उस फैसले का पालन करें।'

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