बालिग युवती को कस्टडी में देने से इनकार
बालिग युवती को कस्टडी में देने से इनकार
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दिल्ली : बालिग बेटी को कस्टडी में देने को लेकर एक परिवाद सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है जिसमें सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हर बालिग युवती को अपनी मर्जी से जिंदगी जीने का अधिकार है और इस तरह के मामलों में शीर्ष अदालत % महा अभिभावक’ भी भूमिका अदा नहीं कर सकता.

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में बालिग़ बेटी को कस्टडी में देने को लेकर एक परिवाद चल रहा है जिसकी सुनवाई  चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ में  हो रही है उनकी इस पीठ ने  टिप्पणी करते हुए एक तलाकशुदा महिला को बालिग बेटी को कस्टडी में देने से इनकार कर दिया. बालिग बेटी कुवैत में अपने पिता के साथ रहना चाहती है. 

पीठ ने कहा कि बालिग युवती को अपने मर्जी से जीवन जीने का अधिकार है और इस पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती. बालिग युवती अपने मर्जी के जहां जाना चाहती है वह जा सकती है और वह जो करना चाहती है वह कर सकती है। उसे अपने मकसद को पूरा करने से नहीं रोका जा सकता. सुप्रीम कोर्ट उस महिला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उसने बालिग बेटी की कस्टडी देने की गुहार की थी। महिला का कहना था कि निचली अदालत ने उसे बेटी की कस्टडी दी थी.

लेकिन गत वर्ष सितंबर महीने में बेटी बालिग हो गई। इसकेबाद बेटी ने कुवैत में रह रहे पिता के साथ रहने की इच्छा जताई. लिहाजा मां ने पिता केखिलाफ अवमानना याचिका दायर कर दी. लेकिन पीठ ने कस्टडी को लेकर किसी तरह का आदेश नहीं पारित किया लेकिन कहा कि चूंकि युवती बालिग हो गई है इसलिए उसे अपना निर्णय लेने का अधिकार है। पीठ ने कहा कि आखिर हम बालिग युवती को ऐसा करने से कैसे रोक सकते हैं.

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