800 वर्ष से इस दरगाह पर मनाया जाता है बसंत पंचमी का पर्व, वजह है बहुत ही खास
800 वर्ष से इस दरगाह पर मनाया जाता है बसंत पंचमी का पर्व, वजह है बहुत ही खास
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बसंत पंचमी का पर्व बसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए मनाया जाता है माघ महीने के पांचवे दिन एक बड़ा जश्न का आगाज होता है, जिसमें विष्णु एवं कामदेव की आराधना भी होती है। इसे बसंत पंचमी का पर्व कहा जाता है तथा भारतभर में इसे सेलिब्रेट किया जाता है। इसी दिन राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की लोकप्रिय हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर भी इस पर्व को सेलिब्रेट किया जाता है। बसंत पंचमी के दिन दरगाह को पीले गेंदे के फूलों से सजाया जाता है तथा दरगाह पर आने वाले सभी भक्त पीले रंग के वस्त्र धारण कर के आते हैं तथा सर पर पीले रंग का पटका एवं पगड़ी पहनते हैं।

यहां बसंत पंचमी पिछले लगभग 800 वर्षों से मनाई जा रही है। दरगाह हजरत निजामुद्दीन औलिया के चीफ इंचार्ज सयैद काशिफ निजामी ने आईएएनएस को कहा, “प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी इस दिन सूफी वसंतोत्सव के तौर पर मनाया गया। इस दिन कव्वाली भी होती है तथा हजरत मिजामुद्दीन औलिया की शान में विशाल कव्वाली पेश की जाती है।” कहा जाता है कि वसंत पंचमी का पर्व सिर्फ हजरत निजामुद्दीन की दरगाह पर ही नहीं मनाया जाता, बल्कि पिछले कुछ वर्षों में कुछ और दरगाहों पर भी इसे मनाया जाने लगा है।

दरगाह हजरत निजामुद्दीन औलिया की निगरानी करने वाले सयैद अदीब निजामी ने कहा, “बसंत पंचमी के दिन दरगाह पर पीले रंग के लिबास पहने सूफी कव्वाल सूफी संत अमीर खुसरो के गीत हजरत निजामुद्दीन की दरगाह पर पेश करते हैं।” उन्होंने आगे बताया कि, “प्रत्येक धर्म के पर्व को मजहब से ऊपर उठ कर देखना चाहिए, भारत देश में गंगा-जमुनी तहजीब की मिसालें दी जाती हैं।” दरअसल बोला जाता है कि, हजरत निजामुद्दीन औलिया अपने भांजे (हरजत तकिउद्दीन नुह) के निधन से बहुत दुखी थे। हजरत निजामुद्दीन औलिया अपने भांजे से बहुत प्यार करते थे। भांजे के निधन के पश्चात् हजरत निजामुद्दीन औलिया दुखी हो गए तथा इतना उन्हें इतना दुःख हुआ कि उन्होंने सभी से मिलना-जुलना बंद कर दिया। वह अपने कार्यालय से भी बाहर नहीं निकलते थे।

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