सुप्रीम कोर्ट का फैसला गलत..! 370 को लेकर पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल, 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने दिया था निर्णय
सुप्रीम कोर्ट का फैसला गलत..! 370 को लेकर पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल, 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने दिया था निर्णय
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नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द करने के 11 दिसंबर के फैसले की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को कई याचिकाएं दायर की गईं हैं। याचिकाकर्ताओं में जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन, अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस, मुजफ्फर इकबाल खान और जम्मू-कश्मीर पीपल्स मूवमेंट शामिल हैं। अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुजफ्फर शाह ने कहा कि उन्होंने उस फैसले की समीक्षा के लिए याचिका दायर की है जिसमें अनुच्छेद 370 को संविधान में एक अस्थायी प्रावधान बताया गया था।

जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा वकील धर्मेंद्र कुमार सिन्हा के माध्यम से दायर समीक्षा याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में त्रुटियां हैं और इसकी समीक्षा के लिए पर्याप्त आधार हैं। याचिका में कहा गया है कि फैसले ने गलत निष्कर्ष निकाला कि महाराजा हरि सिंह द्वारा 1947 में विलय पत्र (IOA) पर हस्ताक्षर करने के बाद पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य ने अपनी संप्रभुता खो दी थी। उन्होंने कहा कि, 'यह प्रस्तुत किया गया है कि निष्कर्ष रिकॉर्ड के चेहरे पर स्पष्ट त्रुटि से ग्रस्त है। IOA के कार्यान्वयन से, बिना कुछ और किए, कुल संप्रभुता का नुकसान नहीं होता है।' 

याचिका में फैसले में विभिन्न गलतियों की ओर इशारा करते हुए तर्क दिया गया है कि अनुच्छेद 370 कोई रियायत नहीं बल्कि राज्य की कार्रवाई का परिणाम था। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि, न्यायालय का यह मानना कि अनुच्छेद 370 को राज्य की स्थितियों के कारण अस्थायी घोषित किया गया था, जिसका अर्थ यह है कि राज्य पूरी तरह से संघ के साथ एकीकृत था, हमारी राय में, एक अस्थिर निष्कर्ष है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि, अदालत का दृष्टिकोण उचित नहीं है और उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर इसे स्पष्ट गलती माना जा सकता है।

उल्लेखनीय है कि, 11 दिसंबर को, 16 दिनों की लंबी चर्चा के बाद, सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक बेंच ने अनुच्छेद 370 के बारे में लंबे समय से चली आ रही बहस को सुलझा दिया था। यह अनुच्छेद 1947 में भारत में शामिल होने पर जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देता था। भारत सरकार ने 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को हटा दिया था। अदालत ने फैसला सुनाया कि भारत के राष्ट्रपति के पास इस प्रावधान को रद्द करने का अधिकार था, क्योंकि राज्य की संविधान सभा, जिसके पास इस पर निर्णय लेने की शक्ति थी, 1957 में अस्तित्व में नहीं थी।

अनुच्छेद 370 हटाना और वहां दलितों को वोटिंग और नौकरी का अधिकार दिलवाना, भाजपा के एजेंडे में शुरू से था और पार्टी ने अपने चुनावी वादों में इसका लगातार उल्लेख किया गया था। शीर्ष अदालत के फैसले को 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक सकारात्मक विकास के रूप में देखा गया था। हालाँकि, वैश्विक स्तर पर चीन-पाकिस्तान और भारत में कांग्रेस तथा कुछ अन्य विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर नाराज़गी जताई थी। 

दलितों के साथ सबसे बड़ा छलावा था 370:-

बता दें कि, भारत के कुछ विपक्षी पार्टियां, जो एक तरफ अपने आप को दलित हितैषी भी बताती है और 370 वापस लागू करने की बात भी करती है। वो ये अच्छी तरह जानती है कि, 370 दलितों के लिए कितना बड़ा छलावा था। अनुच्छेद 370 और 35 A के तहत राज्य में सालों से रह रहे दलितों, वंचितों को वहां की नागरिकता तक नहीं मिली थी, जिसके कारण ये लोग न तो घाटी में संपत्ति खरीद सकते थे, न विधानसभा चुनाव में वोट डाल सकते थे और सबसे गंभीर बात तो ये है कि, जम्मू कश्मीर में यह नियम था कि, दलितों की संतानें कितनी भी पढ़ लें, मगर फिर भी उन्हें मैला ही उठाना होगा, उन्हें नौकरी मिलेगी तो केवल सफाईकर्मी की, इसके अलावा नहीं। ये अपने आप में हैरान करने वाली बात है कि, 370 को वापस लागू करवाने की मांग करने वाली तथाकथित राजनितिक पार्टियां अपने आप को दलित हितैषी बताती हैं। यहाँ ये भी गौर करने वाली बात है कि, जहाँ कश्मीर में दलितों के साथ ये भेदभाव था, वहीं कोई भी पाकिस्तानी, कश्मीरी महिला से शादी करके वहां का नागरिक बन सकता था और तमाम लाभ ले सकता था। इसी कारण घाटी में आतंकवाद भी जमकर पनप रहा था। इन धाराओं से जम्मू कश्मीर को अलग संविधान मिल गया था, जिसमें मनमाफिक संशोधन करके इस्तेमाल किए जाते थे। 

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