नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज गुरुवार (25 जनवरी) को गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी के बेटे उमर अंसारी को 2022 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता के कथित उल्लंघन के संबंध में उनके खिलाफ दर्ज एक आपराधिक मामले में गिरफ्तारी से सुरक्षा दे दी है। न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति पीके मिश्रा की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती देने वाली उमर अंसारी की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है।
बांदा जेल में बंद माफिया मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास की खुलेआम धमकी- अखिलेश यादव जी से कहकर आया हूं कि 6 महीने तक अधिकारियों के तबादले नहीं होंगे। जो यहां है वो यहीं रहेगा। पहले हिसाब-किताब होगा।
— Shivam Bhatt ???????? (@_ShivamBhatt) March 4, 2022
लग रहा है मई-जून में शिमला बनवाकर ही मानेंगे ये! ????????????♂️ pic.twitter.com/IB0ydaLlFu
उमर अंसारी और अन्य के खिलाफ दर्ज केस चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन का मामला है। 4 मार्च, 2022 को अब्बास अंसारी (मऊ सदर सीट से सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रत्याशी), उमर अंसारी और 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ मऊ जिले के कोतवाली पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज की गई थी। उस भाषण में मुख़्तार के बेटे अब्बास अंसारी, उमर अंसारी , और आयोजक मंसूर अहमद अंसारी ने एक सार्वजनिक बैठक में 3 मार्च 2022 को पहाड़पुरा मैदान में मऊ प्रशासन के साथ हिसाब-किताब करने की धमकी दी थी। उन्होंने कहा था कि, अखिलेश यादव जी से बात हो गई है, चुनाव होने के बाद किसी का ट्रांसफर नहीं किया जाएगा, पहले सबका हिसाब किताब होगा। यानी मुख़्तार अंसारी के बेटे चुनाव में सपा सरकार बनने के बाद अधिकारीयों को अंजाम भुगतने की धमकी दे रहे थे। इसका वीडियो भी वायरल हुआ था।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पिछले साल 19 दिसंबर को उमर अंसारी की अग्रिम जमानत अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि उनके खिलाफ अपराध बनता है। कोर्ट ने कहा था कि, "हालाँकि हस्तक्षेप का मामला बनाया जा सकता था, लेकिन मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को कुल मिलाकर मामले के गुण-दोष के आधार पर देखा जा रहा है, क्योंकि अपराध बनता है, मंच पर शिकार करने का उनका कार्य, तथ्य यह है कि दो सह-अभियुक्त अब्बास अंसारी और मंसूर अहमद अंसारी को ट्रायल कोर्ट ने जमानत दे दी है, आगे अग्रिम जमानत आवेदन के समर्थन में हलफनामे में आवेदक (उमर अंसारी) के आपराधिक इतिहास का खुलासा और व्याख्या करने पर विचार किया गया है, जिससे पता चलता है कि आवेदक विभिन्न प्रकार के अपराधों में लिप्त है। आपराधिक गतिविधियों और मुकदमे की कार्यवाही में उनके असहयोग के कारण, अदालत का विचार है कि अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी जाए।''
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