हिजाब विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में घमासान जारी, क़ुरान-इस्लाम से महिला अधिकार पर आई बात
हिजाब विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में घमासान जारी, क़ुरान-इस्लाम से महिला अधिकार पर आई बात
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नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय में कर्नाटक में जारी हिजाब विवाद को लेकर सुनवाई जारी है। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ से कहा कि उन्हें मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए थी और उन्हें बड़ी पीठ के पास केस भेजना चाहिए था। दवे ने आगे कहा कि बेंच उन्हें निर्धारित वक़्त तक दलील रखने के लिए सीमित नहीं कर सकती। साथ ही उन्होंने सुनवाई आज ही खत्म करने के कोर्ट के आग्रह को खारिज कर दिया।

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कॉलिन गोसॉलविस ने भी अपने तर्क रखे। उन्होंने कहा कि हिजाब एक जरुरी परंपरा है या नहीं, पर ये एक धार्मिक परंपरा है। मुस्लिम धर्म में और अनुच्छेद 25 के तहत इसे संरक्षण मिलता है। वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा कि क्या हिजाब किसी भी प्रकार से सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता को ठेस पहुंचाता है? इसके उलट, आप बच्चों को स्कूल से बाहर करते हैं। आप उन्हें हाशिए पर रखते हैं। हम बच्चों को धार्मिक सहिष्णुता नहीं सिखाते। मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि, 'राज्य सरकार के पास एक केंद्रीय कानून के विरुद्ध सरकारी आदेश देने की कोई शक्ति नहीं है। जबकि राज्य ने सरकारी आदेश जारी किया है, केंद्रीय विद्यालय में हिजाब की इजाजत देते हैं। मैं केवल यह कहती हूं कि यदि यह कानून के अनुरूप है, तो मैं कहूंगी कि सरकारी आदेश गलत है।'

अरोड़ा ने आगे कहा कि हम यदि प्रतिबंध लगाते हैं तो वह सबके लिए समान होना चाहिए। भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए और वैश्विक गतिविधियों के हिसाब से आगे बढ़ना चाहिए। ऐसे में कोर्ट को भेदभाव पर गौर करना चाहिए जो कर्नाटक में सरकारी आदेश में किया गया है।

हिजाब मामले में लगातार अपने तर्क बदल रहा मुस्लिम पक्ष :-

बता दें कि सोमवार को हुई सुनवाई में मुस्लिम पक्ष ने अपने सुर बदलते हुए कहा था कि हिजाब की आवश्यकता को कुरान की जगह महिला के अधिकार के तौर पर देखा जाना चाहिए। इसपर सुप्रीम कोर्ट ने भी अधिवक्ता से बदलते तर्कों पर जवाब मांगा है। इससे पहले मुस्लिम पक्ष ने हिजाब को इस्लाम में आवश्यक बताया था। लेकिन, जब कोर्ट ने कहा कि इस्लाम में हिजाब अनिवार्य नहीं है, तो मुस्लिम पक्ष के वकील कहने लगे कि इसे क़ुरान या इस्लाम के नजरिए से नहीं बल्कि, महिला अधिकार के हिसाब से देखा जाना चाहिए। बता दें कि, महिला अधिकार के अनुसार देश की महिलाओं को अपने मन मुताबिक कुछ भी पहनने की आज़ादी है, लेकिन शिक्षण संस्थानों के नियम अलग होते हैं। ऐसे में शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहनने की मांग को लेकर ही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है।  

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