इस वजह से मनाई जाती है महाशिवरात्रि, जानिए कथा
इस वजह से मनाई जाती है महाशिवरात्रि, जानिए कथा
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महाशिवरात्रि का त्यौहार सभी को पसंद आता है और यह पर्व भोले के भक्तों का फेवरेट पर्व माना जाता है। ऐसे में यह पर्व भारत के साथ-साथ नेपाल में भी मनाया जाता है। आपको बता दें कि इस त्यौहार का हिंदू धर्म में काफी महत्व है और साल में होने वाली 12 शिवरात्रि में से महाशिवरात्रि का सबसे अधिक महत्व है। जी हाँ, ऐसा माना जाता है कि सृष्टि का आरंभ इसी दिन से हुआ था। इसी दिन सृष्टि का आरंभ महादेव के विशालकाय रूप से हुआ था। ऐसे में इस बार यानी इस साल महाशिवरात्रि 21 फरवरी को है। आपको बता दें कि शिवरात्रि अर्थात भगवान शिव जी की रात्रि। ऐसे में पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी तिथि की रात्रि को भगवान शिवजी का विवाह पार्वती जी के साथ हुआ था। कहा जाता है यह भगवान शिवजी की आराधना की रात्रि है जो फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (चौदस) को मनाई जाती है।

महाशिवरात्रि व्रत कथा - जंगल में एक शिकारी था। अपने शिकार के इंतजार के लिए वह एक पेड़ पर चढ़कर बैठ गया। बहुत देर इंतजार करने के बाद भी जब कोई शिकार उसके हाथ न लगा तो पेड़ के पत्ते नीचे तोड़कर फेंकने लगा। संयोगवश वह बेल का पेड़ था। उस दिन महाशिवरात्रि का व्रत था। शिकार का इंतजार करते करते वह थक गया और रात भर पत्ते तोड़ता रहा। सुबह उसे पता लगा कि जहां वह बेलपत्र फेंक रहा था वहां एक शिवलिंग था। इस तरह अनजाने में शिकारी से महाशिवरात्रि का व्रत हो गया और उसे मोक्ष की प्राप्ति हो गई। तब से मोक्ष प्राप्ति की साधना के तौर पर महाशिवरात्रि का व्रत रखने की परंपरा शुरू हो गई।

कालकूट कथा - अमृत प्राप्त करने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन हुआ। मगर समुद्र से अमृत निकलने से पहले कालकूट नाम का विष भी सागर से निकला। ये विष इतना खतरनाक था कि इससे पूरा ब्रह्मांड नष्ट हो सकता था। मगर इस विष को केवल भगवान शिव ही नष्ट कर सकते थे। तब भगवान शिव ने कालकूट नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था। इससे उनका कंठ (गला) नीला हो गया। इस घटना के बाद से भगवान शिव का नाम नीलकंठ पड़ गया। मान्यता है कि भगवान शिव द्वारा विष पीकर पूरे संसार को इससे बचाने की इस घटना के उपलक्ष में ही महाशिवरात्रि मनाई जाती है।

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