आज है संभाजी महाराज की पुण्यतिथि
आज है संभाजी महाराज की पुण्यतिथि
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छत्रपति संभाजी महाराज पुरन्दर किले में 14 मई 1657 को हुए थे। इनकी माता का नाम साई बाई था। संभाजी कि माता की मौत के बाद दादी जीजा बाई ने ही इनका पुरा ख्याल रखी। संभाजी जब मात्र 2 साल के थे तब से ही मराठों में संभाजी महाराज छाए हुएं थे। संभाजी आठ अन्य भाषओं के विद्वान भी थे। संभाजी की उस समय मराठाओं के सबसे प्रबल शत्रु मुगल बादशाह औरंगजेब बीजापुर और गोलकुण्डा का शासन हिन्दुस्तान से समाप्त करने में उनकी प्रमुख भूमिका रही।

सम्भाजी अपनी शौर्यता के लिये काफी प्रसिद्ध थे। सम्भाजी ने अपने कम समय के शासन काल मे १२० युद्ध किये और इसमे एक प्रमुख बात ये थी कि उनकी सेना एक भी युद्ध मे पराभूत नहीं हुई। इस तरह का पराक्रम करने वाले वह शायद एकमात्र योद्धा होंगे। उनके पराक्रम की वजह से परेशान हो कर दिल्ली के बादशाह औरंगजेब ने कसम खायी थी की जब तक छत्रपती संभाजी पकडे नहीं जायेंगे वो अपना किमोंश सर पर नहीं चढ़ाएगा।

10 जनवरी 1681 को संभाजी महाराज का विधिवत्‌ राज्याभिषेक हुआ। इसी वर्ष औरंगजेब के विद्रोही पुत्र अकबर ने दक्षिण भाग कर संभाजी का आश्रय ग्रहण किया। अकेले मुग़ल, पोर्तुगीज, अंग्रेज़ तथा अन्य शत्रुओं के साथ लड़ने के साथ ही उन्हें अंतर्गत शत्रुओंसे भी लड़ना पड़ा। राजाराम को छत्रपति बनाने में असफल रहने वाले राजाराम समर्थ को ने औरंगजेब के पुत्र अकबर से राज्य पर आक्रमण कर के उसे मुग़ल साम्राज्य का अंकित बनाने की गुजारिश करने वाला पत्र लिखा। किन्तु छत्रपति संभाजी के पराक्रम से परिचित और उनका आश्रित होने के कारण अकबर ने वह पत्र छत्रपति संभाजी को भेज दिया। इस राजद्रोह से क्रोधित छत्रपति संभाजी ने अपने सामंतो को मृत्युदंड दिया। तथापि उन में से एक बालाजी आवजी नामक सामंत की समाधी भी उन्होंने बनायीं जिनके माफ़ी का पत्र छत्रपति संभाजी को उन सामंत के मृत्यु पश्चात मिला।

1683 में उसने पुर्तगालियों को पराजित किया। इसी समय वह किसी राजकीय कारण से संगमनेर में रहे थे। जिस दिन वो रायगड के लिए प्रस्थान करने वाले थे उसी दिन कुछ ग्रामास्थो ने अपनी समस्या उन्हें बतानी चाही। जिसके चलते छत्रपति संभाजी महाराज ने अपने साथ केवल 200 सैनिक रखे और बाकि की सेना को रायगड भेज दिया। उसी वक्त उनके साले 'गनोजी शिर्के' जिनको उन्होंने वतनदारी देने से इन्कार किया था | मुग़ल सरदार इन्सिलब खान के साथ गुप्त रास्ते से 5000 की फ़ौज के साथ वहां पहुंचे। यह वह रास्ता था जो सिर्फ मराठों को पता था। इसलिए संभाजी महाराज को कभी नहीं लगा था की शत्रु इस और से भी आ सकता है। उन्होंने लड़ने का प्रयास किया किन्तु इतनी बड़ी फ़ौज के सामने 200 सैनिकों को हरा न पाया और अपने मित्र तथा एकमात्र सलाहकार कवि कलश के साथ वह बंदी बना लिए गए |

दोनों को मुसलमान बनाने के लिए औरंगजेब ने कई कोशिशें की। किन्तु धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज और कवि कलश ने धर्म परिवर्तन से इनकार कर दिया। औरंगजेब ने दोनों की जुबान कटवा दी | आँखें निकाल दी किन्तु शेर छत्रपति शिवाजी महाराज के इस सुपुत्र ने अंत तक धर्म का साथ नहीं छोड़ा। 11 मार्च 1689 हिन्दू नववर्ष के दिन दोनों के शरीर के टुकडे कर के औरंगजेब ने हत्या कर दी। किन्तु ऐसा कहते है की हत्या के पहले औरंगजेब ने छत्रपति संभाजी महाराज से कहा के मेरे 4 पुत्रों में से एक भी तुम्हारे जैसा होता तो सारा हिन्दुस्थान कब का मुग़ल सल्तनत में बदल गया होता। जब छत्रपति संभाजी महाराज के टुकडे तुलापुर की नदी में फेंकें गए तो उस किनारे रहने वाले लोगों ने वो इकठ्ठा कर के सिला से  जोड़ दिए इन लोगों को आज "शिवले" नाम से जाना जाता है | जिस के बाद उनका विधिपूर्वक अंतिम संस्कार किया गया । औरंगजेब ने सोचा था की मराठी साम्राज्य छत्रपति संभाजी महाराज के मृत्यु के बाद ख़त्म हो जाएगा। छत्रपति संभाजी महाराज की हत्या की वजह से सारे मराठा एक साथ आकर लड़ने लगे। और औरंगजेब को दक्खन में ही प्राणत्याग करना पड़ा। उसका दक्खन जीतने का सपना इसी भूमि में दफन हो गया | भारत में आज भी संभाजी महाराज को याद किया जाता है और उनकी पूर्णय तिथि मनाई जाती जाती है |

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