'राम मंदिर कोई सामान्य मंदिर नहीं', कारसेवक बलिदानियों को याद कर रो पड़ीं साध्वी ऋतंभरा
'राम मंदिर कोई सामान्य मंदिर नहीं', कारसेवक बलिदानियों को याद कर रो पड़ीं साध्वी ऋतंभरा
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लखनऊ: 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा होनी है। वही इसको लेकर देश में भी बहुत उत्साह है। लोग तैयारी में जुटे में हैं कि 22 जनवरी को जब प्रभु श्रीराम अपने धाम लौटेंगे तो घर-घर दीवाली मनेगी। मगर क्या आप जानते हैं प्रभु श्रीराम को उनका सही स्थान मिलना या उनका मंदिर बनना इतनी सरल बात नहीं थी। ये संभव हो पाया है केवल कारसेवकों के बलिदान से। कारसेवकों के साथ आज से 32 वर्ष पहले कितनी वीभत्सता हुई होगी इसका हम लोग अनुमान भी नहीं लगा सकते हैं। मीडिया रिपोर्टों में कई बातें प्रकाशित हैं जिन्हें पढ़कर उस वक़्त का अनुमान लगा सकते हैं किन्तु बर्बरता के बारे में अगर जानना है तो फिर प्रत्यक्षदर्शियों से पूछिए या फिर कारसेवकों के परिवारों से।

बीते कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एक वीडियो बहुत वायरल है। इसमें दिखाया जा रहा है कि अयोध्या में कारसेवकों को गोलियों से छलनी कर करके सरयू नदी में बहा दिया गया था। बाद में उनका शव बड़ी मशक्कत के पश्चात् निकला। कुछ शव पहचान आ रहे थे तथा कुछ इतने गल गए थे कि पता तक नहीं लग पा रहा था। वो एक कंकाल हो चुके थे। शेयर होती वीडियो बेहद खौफनाक है तथा मन में सवाल छोड़ती है कि आखिर उन कारसेवकों के साथ हुआ क्या होगा। राम मंदिर आंदोलन से जुड़ी साध्वी ऋतंभरा ने हाल ही में इस सिलसिले में एक इंटरव्यू में चर्चा की। उन्होंने कहा कि ये मंदिर सामान्य मंदिर नहीं है। 500 वर्षों तक निरंतर हिंदुओं ने एक जगह माथा टेका, वहाँ परिक्रमा की, मंदिर के लिए संकल्प लिए। ये भारतीयों के खंडित स्वाभिमान की पुन: स्थापना है।

उनसे जब पूछा गया कि जब कारसेवकों पर गोली चली तो क्या नहीं लगा कि ये तो चरम हो गया। इस पर साध्वी ऋतंभरा बोलती हैं कि उनके सीने पर गोली उतारी गई थी। रेत की बोरियाँ भरकर उनके सरयू में डुबोया गया। गुरू भाई को उठाकर ले गए उसमें उन्होंने रुई बाँधी तथा फिर तेल डालकर उन्हें जला डाला गया, बेटियों के छाती में छल्ले दागे गए थे। साध्वी ऋतंभरा बोलती हैं कि उन निहत्थों के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए था। घर के चिराग जब घर को आग लगाते तब बहुत बुरा लगता है। इसी प्रकार राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा की दिनांक जैसे जैसे नजदीक आ रही है वैसे वैसे उन सभी लोगों के बयान प्रासंगित हो गए हैं जिन्होंने उस नरसंहार को करीब से देखा। राम मंदिर आंदोलन को करीब से रिपोर्ट करने वाले महेंद्र त्रिपाठी उन्हीं लोगों में से एक हैं। वो आज भी कारसेवकों की तस्वीर देखते-दिखाते रोने लगते हैं।

एक इंटरव्यू के चलते कारसेवकों के साथ हुई बर्बरता की तस्वीरें दिखाकर बोलते हैं- “मैंने ये सब खुद फोटो खींची थीं। सरदार परम सिंह भुल्लर को मैंने लिखा है- कारसेवकों का हत्यारा। जब मुझे किसी ने इसके बारे में बताया तो मैंने फोटो के साथ ये लिखकर रखा जिससे लोगों को पता रहे गोली कौन चलवाया।” महेंद्र बताते हैं, “आज 32 साल गुजर गए हैं मगर जब-जब मैं ये बातें याद करता हूँ तो मेरे रौंगते खड़े हो जाते हैं। कई दिनों तक मैं सो नहीं पाता था। मुझे लगता था कारसेवकों को मेरे आगे गोली चल रही है। मैं उन्हें बचा रहा हूँ।” इतना बोलकर वो फफक पड़ते हैं।

ध्यान रहे कि राम मंदिर वाकई कोई सामान्य मंदिर नहीं है। ये एक कई पूरी पीढ़ी का संघर्ष है जिसे आज चरितार्थ होते देखा जा रहा है। कारसेवकों का बलिदान है जिन्हें 32 साल पश्चात् जाकर सम्मान प्राप्त हुआ है। उन परिवारों के आँसुओं का हिसाब है जो इस मंदिर के लिए लोगों ने बहाये। 

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