राहुल संग हादसा: संजय, इंदिरा और राजीव को भी मिली थी अप्राकृतिक मौत
राहुल संग हादसा: संजय, इंदिरा और राजीव को भी मिली थी अप्राकृतिक मौत
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राहुल गांधी का एयरक्राफ्ट VT-AVH फॉल्कन 2000 कल हुबली हवाई अड्डे पर रनवे पर दुर्घटनाग्रस्त हुआ जिसके बाद मामले की जांच शुरू कर दी गई है. मगर इस हादसे ने राहुल की  सुरक्षा की पोल खोल दी है. साथ ही ये भी जता दिया है अगर देश के शीर्ष नेताओं में शुमार राहुल गाँधी की सुरक्षा में सेंधमारी जा सकती है तो देश में आम जनता का तो भगवान ही मालिक है. पार्टी सूत्र इसके पीछे साजिश की ओर इशारा कर रहे है, मगर कांग्रेस का शंका जाहिर करना यूँ ही नहीं है. इससे पहले भी राहुल गाँधी के काफिलों पर पत्थरबाजी जैसी घटनाएं गुजरात में हो चूकि है. इसके आलावा भी राहुल कई बार ऐसे वाक़ियों से मुखातिब हुए है. सोचने पर गाँधी परिवार का इतिहास भी मजबूर करता है. देश की सियासत को उस समय जब कोई अपने हाथ में नहीं ले सका. गरीब और पिछड़े भारत को आगे बढ़ाते हुए इस परिवार ने पहले भी ऐसी ही दुर्घटनाओं में अपनों का बलिदान दिया है.

31 अक्टूबर 1984 की शाम इंदिरा गाँधी उड़ीसा चुनाव प्रचार के बाद दिल्ली पहुंची थीं. आमतौर पर जब वो दिल्ली में रहती थीं तो उनके घर एक सफदरजंग रोड पर जनता दरबार लगाया जाता था. वक्त हुआ था 9 बजकर 15 मिनट. गेट के पास सब इंस्पेक्टर बेअंत सिंह तैनात था. बेअंत सिंह ने अचानक अपने दाईं तरफ से 0.38 बोर की सरकारी रिवॉल्वर निकाली और इंदिरा गांधी पर लगातार गोलियां  दाग दी. 

एक और दुखद घटना में 21 मई, 1991 की रात दस बज कर 21 मिनट पर तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी को बम धमाके में उड़ा दिया गया. मौके पर मौजूद बंगलौर की स्थानीय संपादक नीना गोपाल के अनुसार, बम फटते ही मैंने अपनी सफ़ेद साड़ी की तरफ़ देखा. वो पूरी तरह से काली हो गई थी और उस पर मांस के टुकड़े और ख़ून के छींटे पड़े हुए थे. ये एक चमत्कार था कि मैं बच गई. मेरे आगे खड़े सभी लोग उस धमाके में मारे गए थे." जब धुआँ छटा तो राजीव गाँधी की तलाश शुरू हुई. उनके शरीर का एक हिस्सा औंधे मुंह पड़ा हुआ था. उनका कपाल फट चुका था और उसमें से उनका मगज़ निकल कर उनके सुरक्षा अधिकारी पीके गुप्ता के पैरों पर गिरा हुआ था जो स्वयं अपनी अंतिम घड़ियाँ गिन रहे थे.

 23 जून 1980 को संजय गाँधी भी एक विमान दुर्घटना में मारे गए जिस पर आज तक संशय बना हुआ है. ये सभी वाकिये एक बात की ओर इशारा करते है कि गाँधी परिवार से जो भी देश का मुस्तक़बिल बन कर उभरा उसकी मौत अप्राकृतिक तरीके से ही हुई है. क्या एक ही परिवार के साथ होती इन घटनाओं को महज एक संयोग कहा जा सकता है या ये किसी साजिश की ओर इशारा है, क्योकि राहुल गाँधी के सन्दर्भ में यह इत्तफाक तीसरी बार हुआ है. 

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