नरसिम्हा राव की 'लाश' को भी करना पड़ा इंतज़ार, लेकिन कम नहीं हुआ सोनिया गांधी का अहंकार !
नरसिम्हा राव की 'लाश' को भी करना पड़ा इंतज़ार, लेकिन कम नहीं हुआ सोनिया गांधी का अहंकार !
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देश के पूर्व पीएम और दिग्गज कांग्रेसी नेता पीवी नरसिम्हा राव का जन्म 28 जून 1921 को वर्तमान तेलंगाना के लेकनेपल्ली में हुआ था. वह देश के 10वें पीएम बने. पीवी नरसिम्हा राव के शासन में ही भारत ने परमाणु बम और मिसाइलों पर काम करना आरंभ किया था. पीवी नरसिम्हा राव के राज में ही पंजाब में आतंकवाद का सफाया हुआ था. पीवी नरसिम्हा राव एक और बात को लेकर सुर्ख़ियों में रहे, वह थी सोनिया गांधी के साथ उनकी नाराजगी. यहां तक कि नरसिम्हा राव के निधन के बाद उनके शव को कांग्रेस हेडक्वार्टर के अंदर तक लाने की अनुमति नहीं मिली.

दरअसल, सोनिया गांधी से पीवी नरसिम्हा राव की निजी दुश्मनी तो नहीं थी, कित्नु उनके पीएम पद को लेकर सोनिया गांधी से उनकी नाराजगी शुरू हुई थी. अपने करीबी पत्रकार को एक बार नरसिम्हा राव ने बताया था कि जब वो पीएम रहते हुए भी सोनिया गांधी को फोन करते तो उन्हें काफी देर तक होल्ड पर रख दिया जाता था. इतना ही नहीं जब वह उनसे मिलने जाते तो सोनिया गांधी उनसे बहुत प्रतीक्षा  करवाती थीं. बस फिर क्या था यहीं से पीवी नरसिम्हा राव और सोनिया गांधी में दरार बढ़ने लगी. एक किताब में एक बात का भी खुलासा किया गया है कि पीवी नरसिम्हा राव ने अपने पीएम रहते सोनिया गांधी के आवास 10 जनपथ पर इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) को लगा रखा था. 10 जनपथ की हर खबर नरसिम्हा राव तक जाती थी. इस संबंध में उन्होंने करीबी पत्रकार से कहा था कि कांग्रेस नेता होने के नाते नरसिम्हा राव तो फोन पर सोनिया गांधी की प्रतीक्षा कर सकते हैं. किन्तु देश का पीएम इंतजार नहीं कर सकता. यदि पीएम को सोनिया गांधी के फोन पर इंतजार करना पड़े, तो यह प्रधानमंत्री के पद का तिरस्कार होगा. इसी वजह से नरसिम्हा राव, गांधी परिवार के मुखियाओं से दूर होते गए और इस परिवार की आंखों में नासूर भी बनते गए.

23 दिसंबर 2004. पूर्व पीएम पीवी नरसिम्हा राव ने लगभग 11 बजे AIIMS में अंतिम सांस ली थी. करीब ढाई बजे उनका पार्थिव देह AIIMS से उनके आवास 9 मोती लाल नेहरू मार्ग लाया गया. उस समय चर्चित आध्यात्मिक गुरु चंद्रास्वामी, राव के 8 बेटे-बेटियां, भतीजे और परिवार के अन्य लोग आवास पर उपस्थित थे. राव का पार्थिव देह AIIMS से घर पहुंचने के बाद असल राजनीति शुरू हुई. तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने राव के छोटे बेटे प्रभाकर को सुझाव दिया कि उनका अंतिम संस्कार हैदराबाद में किया जाए. हालांकि, उनका परिवार दिल्ली में ही अंतिम संस्कार करना चाहता था. कुछ देर बाद कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी के एक और करीबी नेता गुलाब नबी आजाद 9 मोती लाल नेहरू मार्ग पहुंचे. उन्होंने भी राव के परिवार से शव को हैदराबाद ले जाने का अनुरोध किया.

अगले दिन यानी 24 दिसंबर को तिरंगे में लिपटा नरसिम्हा राव का शव एक तोप गाड़ी (गन कैरिज) में रखा गया. नरसिम्हा राव का शव कांग्रेस हेडक्वार्टर के बाहर पहुंचा. पार्टी हेडक्वार्टर का दरवाजा बंद था. वहां कांग्रेस के तमाम नेता उपस्थित थे, किन्तु सब चुप्पी साधे हुए थे. हां...सोनिया गांधी और अन्य नेता अंतिम विदाई देने के लिए बाहर अवश्य आए. चूंकि किसी भी नेता के देहांत के बाद उसका शव पार्टी मुख्यालय में आम कार्यकर्ताओं के दर्शन के लिए रखने की परंपरा थी, जो आज भी है. ऐसे में राव के परिवार वालों को इस बात की उम्मीद भी नहीं थी कि ऐसा भी हो सकता है. लगभग आधे घंटे तक शव को ले जा रही तोप गाड़ी कांग्रेस हेडक्वार्टर के बाहर ही इंतज़ार में खड़ी रही कि दरवाजा खुलेगा और राव का शव अंदर रखा जाएगा, लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो फिर यह एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गई, जहाँ से हैदराबाद ले जाकर उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया. लेकिन PM पद पर रहते हुए भी सोनिया गांधी का इंतज़ार करने वाले नरसिम्हा राव की लाश को भी कांग्रेस मुख्यालय के बाहर इंतज़ार करना ही पड़ा.

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