दिल्ली के प्रदूषणों पर अदालतों  की खरी- खरी
दिल्ली के प्रदूषणों पर अदालतों की खरी- खरी
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नई दिल्ली : दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सालभर प्रदूषण का जो माहौल रहा उसे लेकर देश की अदालतों ने सख्त रवैया अख्तियार करते हुए सरकार, जिम्मेदार एजेंसियों और प्रशासन को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि क्या प्रशासन लोगों के मरने का इंतजार कर रहा है? बता दें कि साल 2016 में दिल्लीवासियों ने वायु प्रदूषण को बहुत बर्दाश्त किया.

उल्लेखनीय है कि दिल्ली में एक जनवरी 2016 को ही वायु गुणवत्ता की स्थिति काफी खराब थी और इसके अलावा दीपावली के बाद के, पहले चार दिनों में वायु प्रदूषण के स्तर को भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने पिछले 17 सालों में पहली बार सर्वाधिक खतरनाक स्तर पर घोषित कर दिया था. शहर में वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों में से एक कारण खुले में कचरा जलाया जाना भी है.इस समय भी दिल्लीवासी जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं. दिल्ली में धुंध की आपातकालीन स्थिति और सरकार के पास उससे निपटने की कोई आकस्मिक योजना नहीं होने पर सालभर अदालतों की कड़ी प्रतिक्रियाएं आईं और उन्होंने कहा कि क्या ‘लोगों के मरने का इंतजार किया जा रहा है.

नवंबर महीने में तो दिल्ली उच्च न्यायालय, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) और उच्चतम न्यायालय तीनों ने शहर में हवा की खराब गुणवत्ता से निपटने के लिए केंद्र और चार उत्तरी राज्यों की निष्क्रियता पर खूब नाराज हुईं. आपको बता दें कि दस नवंबर को सबसे पहले कठोर टिप्पणी दिल्ली हाई कोर्ट से आई जिसमें कहा गया कि खतरनाक प्रदूषण का स्तर दिल्लवासियों के लिए ‘मौत की सजा’ की तरह है.

इसके बाद एनजीटी ने दिल्ली सरकार से सवाल किया कि लोगों को इतने भयावह वायु प्रदूषण का सामना क्यों करना पड़ रहा है? उधर,हवा में प्रदूषक कण (पीएम) 2.5 के 250 से 430 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के ऊपर रहने को प्रदूषण का ‘गंभीर स्तर’ करार देते हुए प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी एस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि जब वायु प्रदूषण ऐसे खतरनाक स्तर तक पहुंचता है तो निर्माण गतिविधियों पर रोक लगाने और सम-विषम योजना लागू करने सहित कई तत्काल कदमों को उठाने की जरूरत है.

यही नहीं प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर ने इस मुद्दे पर ढुलमुल जवाब के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की खिंचाई भी की.धुंध की आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए कोई कार्ययोजना नहीं होने पर सीपीसीबी की आलोचना करते हुए सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा, क्या आप तब तक इंतजार करना चाहते हैं, जब तक लोग मरना न शुरू कर दें, लोग हांफ रहे हैं. हालाँकि सॉलिसीटर जनरल रंजीत कुमार ने हालात से निपटने के लिए जरूरी काम नहीं कर पाने के लिए क्रियान्वयन एजेंसियों को जिम्मेदार ठहराते हुए सरकार का बचाव किया.

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