इस कारण बागी बने थे पान सिंह तोमर
इस कारण बागी बने थे पान सिंह तोमर
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भारत के इतिहास में कई डाकुओं की कहानी है वही कुछ डाकुओं की कहानी ऐसी है जिसे पढ़कर आपको प्रतीत होगा कि इन्हें काफी सताया गया होगा या फिर सिस्टम से विवश होकर ये बागी हो गए। मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के पान सिंह तोमर की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। साढ़े 6 फिट उंचा कद वाला पान सिंह अपनी भूमि के लिए 8 वर्ष तक जूते घिसने के पश्चात् डकैत बना। इससे पूर्व वह सेना में सूबेदार के पद पर तैनात था। ये डकैत नेशनल चैम्पियन भी रहा। सूबेदार के पद पर रहते उसने 7 वर्षों तक ये मुकाम अपने नाम कर रखा था। एक बार उसने भूमि विवाद में अपने संबंधित बाबू सिंह का क़त्ल कर दिया था। इस घटना के पश्चात् पान सिंह ने स्वयं को बागी घोषित कर दिया।

वही कभी देश के लिए दौड़ने वाला पान सिंह अब बीहड़ों में दौड़ रहा था। कुछ ही दिनों में बीहड़ों को कुचलते हुए पान सिंह पूरी चंबल घाटी का डकैत बन गया। कहा जाता हैं कांटो से भरी चम्बल घाटी में शेर नहीं होते, मगर विश्व ने पान सिंह को नाम दिया चंबल का शेर। पान सिंह जब एक बार बोलता तो पूरी चंबल घाटी थर्राने लगती। और तो और खुद पुलिस वाले पान सिंह के नाम से कांपते थे। पान सिंह अपने गैंग में सम्मिलित डाकुओं से नशा न करने की अपील करता था। पान सिंह का भतीजा बलवंत के मुताबिक, पान सिंह मजाकिया किस्म का शख्स था। वो बड़े बूढों से लेकर सबसे मजाक करता था। पान सिंह ताश खेलने का शौक़ीन था, उसे ताश में देहला पकड़ (ताश का एक खेल) काफी पसंद था। पान सिंह की पुत्री अट्टाकली कहती हैं कि पान सिंह फरारी के समय तीन-से चार बार घर आया मगर वो घर पर कुछ लेकर नहीं आता था बल्कि घर से चार सौ-पांच सौ रुपया ले जाया करता था। 

पान सिंह को पकड़ने के लिए BSF की दस कंपनिया, STF की 15 कंपनिया लगाई गई थी। तत्पश्चात, जिला फ़ोर्स अलग थी। डकैत पान सिंह को पकड़ने के लिए सरकार के करोड़ों रुपए खर्च हुए थे। पान सिंह के शत्रुओं में से एक रहे वीरेंद्र सिंह पान सिंह के डर से 24 घंटे पुलिस सुरक्षा में रहते थे। 1981 में पान सिंह का भाई माता दिन पुलिस मुठभेड़ में मारा गया, जिसके प्रतिशोध में पान सिंह ने गुर्जर समुदाय के 6 व्यक्तियों का क़त्ल कर दिया। इस घटना से मध्यप्रदेश की राजनीति में हड़कंप मच गया। इसके पश्चात् पान सिंह ने मध्यप्रदेश के सीएम रहे अर्जुन सिंह को सीधे चैलेंज कर दिया। ये बात अर्जुन सिंह को खल गई। इसके पश्चात् उन्होंने पान सिंह को जिंदा या मुर्दा पकड़ने का फरमान सुना दिया। बाद में तत्कालीन डीएसपी ने पान सिंह के गांव के व्यक्तियों को नौकरी का लालच देकर पान सिंह को पकड़ने के लिए मुखबिरी कराई। कहा जाता हैं कि अक्टूबर 1981 में तकरीबन 10000 की फ़ोर्स ने पान सिंह को घेरकर मार गिराया।

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