वर्ष 2000 में सिडनी में खेलों के महाकुंभ का आयोजन शुरू किया गया था। इंडिया ने इस ओलंपिक के लिए कुल 65 खिलाड़ियों का दल सिडनी रवाना किया जिसमें 44 पुरुष खिलाड़ी थे और 21 महिला खिलाड़ी रहीं। उस समय जब जब भारत की टीम ऑस्ट्रेलिया का दौरा करती थी तो बमुश्किल 1 या 2 मैच में जीत हासिल कर पाती। कुछ ऐसा ही सूरत ए हाल सिडनी ओलंपिक में भी रहा। हालांकि15 सितंबर से लेकर 1 अक्टूबर तक चले इन ओलंपिक खेलों में इंडिया का खाता चौथे दिन ही शुरू हो गया।
आंध्र प्रदेश के एक छोटे से गांव वूसावानिपेटा पैदा होने वाली मल्लेश्वरी के परिवार वालों ने कभी नहीं सोचा था कि यह लड़की एक दिन उनका ही नहीं बल्कि पूरे भारत का नाम रोशन करेगी। सिर्फ 12 वर्ष की आयु में कोच नल्लामशेट्टी अप्पन्ना के संरक्षण में मल्लेश्वरी ने वेटलिफ्टिंग में प्रशिक्षण आरम्भ किया। कर्णम मल्लेश्वरी की प्रतिभा को ‘अर्जुन पुरस्कार’ विजेता मुख्य राष्ट्रीय कोच श्यामलाल सालवान ने पहचाना, जब वह अपनी बड़ी बहन के साथ 1990 में बंगलौर कैम्प में गई थीं। सिर्फ यहीं से उनका खेल प्रेम जाग उठा तथा वह पूरी प्रकार खेल में रम गईं उनका संघर्ष रंग लाया तथा सिर्फ एक साल में भारतीय टीम की दावेदारी में आ गईं।
1993 में मल्लेश्वरी ने विश्व चैम्पियनशिप में तीसरा स्थान हासिल किया तथा उसके पश्चात् 1994 और 1995 में 54 किग्रा डिवीजन में विश्व खिताब की एक श्रृंखला के साथ, 1996 में फिर से तीसरे स्थान पर रहीं। उन्होंने 1994 तथा 1998 के एशियाई खेलों में दो सिल्वर भी प्राप्त किए, तथा 1999 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
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