मुफ्त के चुनावी वादों पर अब सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच करेगी सुनवाई, CJI करेंगे पीठ का गठन
मुफ्त के चुनावी वादों पर अब सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच करेगी सुनवाई, CJI करेंगे पीठ का गठन
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नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव के दौरान वोटर्स को मुफ्त सामान बांटने या इसका वादा करने से संबंधित मामले पर आज मंगलवार (1 नवंबर) को सुनवाई की। इस दौरान प्रधान न्यायाधीश (CJI) यूयू ललित की अगुवाई वाली दो सदस्यीय पीठ ने इस मामले को शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय बेंच के पास भेज दिया है। अब तीन जजों की बेंच इस मामले पर सुनवाई करेगी। हालांकि 8 नवंबर को CJI यूयू ललित सेवानिवृत्त हो रहे हैं। ऐसे में 9 नवंबर को नए CJI बन रहे न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ही पद संभालने के बाद इस तीन सदस्यीय बेंच का गठन करेंगे।

सुनवाई के दौरान CJI यूयू ललित ने आदेश दिया है कि इस मामले को तीन जजों की बड़ी बेंच के पास भेज रहे हैं। CJI ने कहा कि हमारा मानना है कि इस मामले पर जल्द से जल्द 3 सदस्यीय बेंच सुनवाई करे। अभी तक इस मामले की CJI की अगुवाई वाली दो सदस्यीय पीठ सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील अश्वनी उपाध्याय ने कहा कि कोर्ट ने इस मसले पर विशेषज्ञ समिति बनाने के लिए कहा था। हम प्रस्ताव देते हैं कि यह समिति बनाई जाए।

वहीं निर्वाचन आयोग ने इस दौरान कहा कि हम इस समिति में नहीं रहेंगे। यह अवश्य है कि यदि कोई समिति बनी तो हम पूरी मदद करेंगे। इस पर CJI ने कहा कि हम इस मामले को तीन जजों की बड़ी बेंच के पास भेज रहे हैं। बता दें कि यह याचिका वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है। इसमें उन्होंने शीर्ष अदालत से मांग की है कि वो सियासी दलों को चुनावी माहौल में फ्री सामान देने के वादे करने की मंजूरी ना दे। याचिका में कहा गया है कि सियासी दल ऐसा केवल अपने वोटबैंक के लिए करते हैं।

वहीं दूसरी तरफ, मुफ्त चुनावी सौगातों को लेकर निर्वाचन आयोग ने सियासी दलों के समक्ष आदर्श चुनाव संहिता में संशोधन का एक प्रस्ताव रखा है। आयोग ने इसके तहत चुनावी वादों की आर्थिक व्यवहार्यता के बारे में वोटर्स को प्रामाणिक जानकारी देने को लेकर सियासी दलों की राय मांगी थी। आयोग ने सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों को लिखे गए एक पत्र में उनसे 19 अक्टूबर तक उनके विचार साझा करने के लिए कहा था। 

इस पर भाजपा ने अपने जवाब में कहा था कि मुफ्त चुनावी सौगात वोटर्स को लुभाने के लिए होती हैं, जबकि कल्याणवाद एक नीति है, जिससे वोटर्स का समावेशी विकास किया जाता है। समझा जाता है कि पार्टी को चुनाव आयोग के इस विचार पर कोई आपत्ति नहीं है कि सियासी दलों को अपने चुनावी वादों की वित्तीय व्यवहार्यता भी सौंपनी चाहिए। शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने भी भाजपा की तरह ही जवाब दिया था। जबकि, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) ने इसका विरोध किया था और कहा था कि, दलों को चुनावी वादे करने की आज़ादी होनी चाहिए। 

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