लेखकों का अवॉर्ड लौटाना सरकार के खिलाफ ‘गढ़ी हुई कागजी बगावत’ है
लेखकों का अवॉर्ड लौटाना सरकार के खिलाफ ‘गढ़ी हुई कागजी बगावत’ है
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नई दिल्ली : केंद्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली ने लेखकों की ओर से साहित्य अकादमी अवॉर्ड लौटाने के सिलसिले को मोदी सरकार के खिलाफ ‘एक गढ़ी हुई कागजी बगावत’ करार दिया है. उन्होंने इस मामले में फेसबुक पर एक लंबी  पोस्ट लिखी है. ‘एक गढ़ी हुई क्रांति - अन्य साधनों द्वारा राजनीति’ शीषर्क से किए गए एक फेसबुक पोस्ट में जेटली ने लिखा, ‘दादरी में अल्पसंख्यक समुदाय के एक सदस्य की पीट-पीटकर की गई हत्या बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है. सही सोच रखने वाला कोई भी इंसान इस घटना को सही नही ठहरा सकता है. ऐसी घटनाएं विश्व पटल पर देश की छवि खराब करती हैं.’ गौरतलब है कि दादरी कांड के बाद दर्जनों लेखकों ने अपने साहित्य अकादमी अवॉर्ड लौटा दिए हैं. उनका दावा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में असहनशीलता का माहौल बनाया जा रहा है.

जेटली ने सवाल करते हुआ लिखा कि, ‘यह सचमुच का विरोध है या गढ़ा हुआ विरोध है? क्या यह वैचारिक असहनशीलता का मामला नहीं है?’ बड़े पैमाने पर वाम विचारधारा या नेहरूवादी विचारधारा की ओर झुकाव रखने वाले लेखकों को पिछली सरकारों द्वारा मान्यता दी गई थी. उन्होंने कहा, ‘उनमें से कुछ इस मान्यता के हकदार रहे होंगे. न तो मैं उनकी अकादमिक प्रतिभा पर सवाल उठा रहा हूं और न ही मैं उनके राजनीतिक पूर्वाग्रह रखने के अधिकार पर सवाल खड़े कर रहा हूं. उनमें से कई लेखकों ने मौजूदा प्रधानमंत्री के खिलाफ उस वक्त भी आवाज उठाई थी जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे.’


वित्त मंत्री ने कहा कि जब पिछले साल मोदी PM बने तो ‘पिछली सरकारों में संरक्षण का आनंद ले रहे लोग जाहिर तौर पर मौजूदा सरकार से असहज हैं.’ उन्होंने कहा कि कांग्रेस के और सिमटने के कारण उनकी यह ‘असहजता’ पहले से बढ़ गई है. जेटली ने कहा, ‘लगता है कि मोदी-विरोधी या भाजपा-विरोधियों की नई रणनीति ‘अन्य साधनों से राजनीति करना’ है. इसका सबसे आसान तरीका है कि एक संकट गढ़ो और फिर इस गढ़े हुए संकट पर सरकार के खिलाफ एक कागजी बगावत गढ़ दो.’

उन्होने कहा कि देश में असहनशीलता का कोई माहौल नहीं है. ‘ये जो गढ़ी हुई बगावत है, वह दरअसल भाजपा के प्रति वैचारिक असहनशीलता का मामला है.’ जेटली ने याद दिलाते हुए कहा कि जब NDA सरकार सत्ता में आई तो चर्चों सहित ईसाई समुदाय के खिलाफ एक के बाद एक कर हमलों की खबरें आईं और मोदी सरकार पर आरोप लगाया गया कि उनकी सरकार में देश में अल्पसंख्यक समुदाय असुरक्षित महसूस कर रहा है. हमलों के ऐसे हर एक मामलों की जांच कराई गई और उनमें से ज्यादातर चोरी या बोतलें फेंक देने या खिड़कियों के शीशे तोड़ देने जैसे छोटे-मोटे अपराध के मामले पाए गए. दिल्ली और इसके आसपास के स्थानों में ऐसे किसी भी हमले को धर्म या राजनीति से जुड़ा हुआ नहीं कहा जा सका.’ आरोपियों की गिरफ्तारी हुई और उन पर मुकदमे चलाए जा रहे हैं . पश्चिम बंगाल में एक नन से बलात्कार के मुख्य आरोपी को बांग्लादेशी मूल का पाया गया था .
 
जेटली ने कहा, ‘उस वक्त विरोध ने दो कारकों को उजागर किया. पहला यह कि यह अल्पसंख्यक समुदाय की संस्थाओं पर हमला था और दूसरा यह कि प्रधानमंत्री इस पर चुप थे. जब यह बात साबित हो गई कि ‘हमलों’ के ये मामले आपराधिक घटनाएं थीं, तो दुष्प्रचार और दुष्प्रचार करने वाले दोनों गायब हो गए.’ वित्त मंत्री ने कहा कि विरोध कर रहे लेखकों ने मोदी सरकार के खिलाफ कोई मुद्दा तलाशने में बड़ी मशक्कत की है.

उन्होंने कहा, ‘तर्कवादी एम एम कलबुर्गी की कर्नाटक में गोली मारकर हत्या की गई, जहां कांग्रेस की सरकार है. एक अन्य तर्कवादी एन दाभोलकर की हत्या महाराष्ट्र में 20 अगस्त 2013 को गई. उस वक्त वहां कांग्रेस-एनसीपी की सरकार थी. दोनों घटनाओं की स्पष्ट शब्दों में निंदा करने की जरूरत है.’
 
जेटली ने कहा, ‘कानून-व्यवस्था बनाए रखना और हमले के आसान निशाने को सुरक्षा देना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है. इसी तरह, दादरी कांड उत्तर प्रदेश में हुआ जहां समाजवादी पार्टी की सरकार है.’ भाजपा नेता ने कहा, ‘अन्य साधनों के जरिए की जा रही राजनीति में एक वैकल्पिक रणनीति तैयार की गई है. तीन अपराधों को मिला दें, सच को छुपा दें और उन सभी को मौजूदा केंद्र सरकार के पाले में फेंक दें.’
 
उन्होंने कहा, ‘लेकिन किसी बगावत को गढ़ने के लिए सच को छुपाना जरूरी है और यह छवि पैदा करना जरूरी है कि मोदी सरकार इन अपराधों के लिए जिम्मेदार है, भले ही ये घटनाएं कांग्रेस या सपा शासित सरकारों में हुई हों.’’ जेटली ने कहा, ‘‘2015 में विरोध कर लेखकों में से एक ने तो अपना पद्मश्री लौटाने का एक कारण 1984 के सिख दंगे को भी गिनाया. इस लेखक की अंतरात्मा को जागने में 30 साल लग गए."
 
विरोध कर रहे लेखकों से सवाल करते हुए जेटली ने कहा कि उनमें से कितनों ने आपातकाल के दौरान गिरफ्तारियां दी हैं, विरोध-प्रदर्शन किए हैं या इंदिरा गांधी की तानाशाही के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की है? जेटली ने कहा, ‘1984 में सिखों के कत्लेआम या 1989 के भागलपुर दंगे के खिलाफ लेखकों ने कुछ बोला था? 2004 से 2014 के बीच हुए करोड़ों रूपए के घोटाले पर इन लेखकों की अंतरात्मा नहीं जागी थी ?’

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