कोरोना को मिटाने के​ लिए विश्वास से भरी नजर आई भारतीय जनता
कोरोना को मिटाने के​ लिए विश्वास से भरी नजर आई भारतीय जनता
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कोरोना के कहर ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया है. वायरस की वजह से दुनिया ठहर सी गयी है. अब यह जाहिर हुआ है कि भारत आशाओं की अनुभूति को हर पल जिंदा रखने वाला देश है. यह इस देश की सकारात्मक ऊर्जा है कि यहां के लोग कठिनाइयों से अवसाद में जाने की बजाय नए रास्तों पर आगे बढ़ने का अवसर तलाश लेते हैं. संयम, सेवा, समर्पण, सहयोग, संतुष्टि और संकल्प का विलक्षण संयोग देश ने इस कठिन दौर में दिखाया है. लॉकडाउन की कठिनाइयों में नवाचार के नए-नए प्रयोग दिख रहे हैं. निश्चित ही यह सेवा और समर्पण के लिए मजबूत मन से संकल्पित होने का दौर है.

आपकी जानकारी के लिए बता दे कि इस विकट परिस्थिति के खिलाफ खड़े होने की जिम्मेदारी भी सवा सौ करोड़ कंधों पर है. याद रखना चाहिए कि कोविड-19 के खिलाफ इस महायुद्ध में अमेरिका और यूरोप के देशों जैसी दुनिया की शीर्ष महाशक्तियां लाचार नजर आ रही हैं. स्वास्थ्य और सम्पन्नता के विश्वस्तरीय मॉडल निरीह और बेबस नजर आ रहे हैं. ऐसे में वैश्वीकरण में सिमट चुकी दुनिया वाले इस दौर में भारत का भी इससे अछूता रह जाना संभव नहीं था, किंतु संतोष और राहत की बात है कि हम और हमारा देश इस अदृश्य परजीवी के खिलाफ दुनिया के तमाम शक्ति संपन्न देशों की तुलना में बेहतर स्थिति में लड़ रहे हैं. यद्यपि संक्रमण के मामलों में अब तेजी आई है, फिर भी यह दर यूरोपीय देशों और अमेरिका से अभी कम है. अमेरिका और ब्राजील जैसे देश भारत से मदद मांग रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन को कोविड-19 के विरुद्ध भारत के कदमों में उबरने की आस दिख रही है. दुनिया के श्रेष्ठतम चिकित्सा प्रणाली वाले इटली और अमेरिका की स्थिति देखने के बाद यह वैश्विक संगठनों के लिए चकित करने वाली बात है कि भारत इस वायरस पर तुलनात्मक रूप से कैसे नियंत्रण कर सका है?

इस सवाल के जवाब को समझते हुए सरकार की मानवीयता आधारित नीति और नागरिकों की संकल्प शक्ति का समन्वय नजर आता है. इस वायरस के आसन्न संकट के समय मोदी सरकार के सामने दो विकल्प थे. पहला, सरकार या तो देश के आर्थिक हितों को प्राथमिकता देते हुए मानव जीवन को दूसरी वरीयता पर रखती,  या दूसरा कि सबकुछ बंद करके ‘मानव जीवन’ की रक्षा करने की नीति पर चलती. सरकार ने दूसरा विकल्प चुना और ‘मानव जीवन’ की रक्षा को ध्येय मानकर इस लड़ाई में आगे बढ़ते हुए ‘संपूर्ण लॉकडाउन’ घोषित किया. यह वह कदम था, जिसका साहस दुनिया का कोई विकसित देश नहीं दिखा पाया  था. उपनिषद वाक्य है- ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्, अर्थात शरीर ही सभी कर्तव्यों को पूरा करने का साधन है. मोदी सरकार ने इसी को प्राथमिकता देते हुए आर्थिक हितों को दूसरे पायदान पर रखा. वहीं मोदी सरकार के इस कदम पर देश की जनता ने भी वही भाव दिखाया, जिसकी अपेक्षा मानवीय संवेदनाओं वाले समाज से की जाती है. सतर्कता, संयम, सेवा, समर्पण और अडिग संकल्प का भाव सवा सौ करोड़ जनता वाले देश में जिस ढंग से दिखा है, वह मिसाल है.

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