आज ही के दिन सुलगी थी 1857 क्रांति की चिंगारी, जानें क्या ​थी वजह
आज ही के दिन सुलगी थी 1857 क्रांति की चिंगारी, जानें क्या ​थी वजह
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बीते इतिहास में भारत की आजादी के लिए ​कई वीर सपूतों ने अपना बलिदान दिया है. उस समय क्रांतिकारों के मन में आजादी के सुनहरे सपने की चिंगारी धधकी थी. बता दे कि क्रांति की ज्वाला 10 मई, 1857. इतिहास में यह क्रांति की तारीख है. मेरठ छावनी से उठी क्रांति की यह ज्वाला देशभर में धधकी जिससे ब्रितानी हुकूमत की चूलें हिल गई. बहादुरशाह जफर, नाना साहब, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे सहित कई बड़े नाम इस क्रांति में कूदे, अंग्रेजों को चुनौती दी. इसे प्रथम स्वाधीनता संग्राम का नाम भी दिया गया. बैरकपुर छावनी में मंगल पांडेय के विद्रोह के बाद से भारतीय सिपाहियों में गोरों के खिलाफ नफरत और बढ़ गई थी. सिपाहियों के साथ देशवासियों में क्रांति की खातिर रोटी-कमल का संदेश गांव-गांव घूमने लगा था.

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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि उस समय अंदर ही अंदर चिंगारी सुलग रही थी. तभी बड़ी चूक मेरठ में अंग्रेज अफसरों ने कर दी. बस क्या था, क्रांति की माटी से आजादी का सुनहरा सपना दिखाने वाली ज्वाला जल उठी. 

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भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के कई अहम पड़ावों को जाने-माने दार्शनिक कार्ल माक्र्स ने बतौर पत्रकार न्यूयार्क डेली ट्रिब्यून के लिए सिलसिलेवार कवर किया और मेरठ की क्रांति से लंदन तक को परिचित कराया था. कार्ल माक्र्स की 15 जुलाई की एक रिपोर्ट मेरठ में भी है. इसमें उन्होंने मेरठ छावनी में घटित घटनाक्रम का विस्तारपूर्वक उल्लेख किया है.

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