मदर्स डे: माँ के सम्मान में सिर्फ औपचारिकता क्यों ?
मदर्स डे: माँ के सम्मान में सिर्फ औपचारिकता क्यों ?
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// जला के रख दिया मैने दीया हवाओं पे,  मुझे यकीं है अपनी  माँ की दुआओं पे //

मदर्स डे, माता का दिवस. माँ. दुनिया का सबसे पावन शब्द और सबसे पवित्र शख्स. देव, दानव, मानव, पशु, पक्षी, जीव जगत में जन्म लेने वाला हर प्राणी इस महान शब्द और ममता के सागर की एक बून्द मात्र है. जीवन के अस्तित्व के बाद से आज तक कोई भी  माँ को परिभाषित ही नहीं कर पाया है. कई किस्से और कहानियां युगों युगों से माँ का बखान करती आ रही है. मगर आज तक पूर्ण परिभाषा लिखना किसी के बस में नहीं है. आज कल माँ के प्रति सम्मान में मदर्स डे का प्रचलन है. अच्छा है माँ तो है हि वंदनीय. मगर क्या मौजूदा युग में भी माँ को वही मान सम्मान मिल रहा है जिसकी वो अधिकारिणी है. एक दिन मदर्स डे मना कर जिम्मेदारियां पूरी कर ली जाती है. अगले ही दिन खबरों में औलादों  के माँ पर किये जुल्मों की दास्ताँ सिर्फ सुनकर या पढ़कर भुला दी जाती है.

 ''माँ अपने दिल में हमारी फिक्र दबा के रखती है, वो लडडू  छुपाती तो है पर दिखा के रखती है''

माँ अपना जीवन बच्चों के लिए ही जिति है. जिंदगी भर आपकी ख़ुशी के लिए तपस्या करती वो देवी अपना वक्त आने पर ठुकरा दी जाती है. अपनी रगो के लहू को दूध बनाकर छाती से पिलाने वाली आज कल ज्यादातर मौको पर एक निवाले को तरस रही है. क्या लिखा जाये की माँ क्या है, क्योकि बड़े बड़े ऋषि, मुनि, ज्ञानी, ध्यानी भी माँ शब्द को पूर्णता तक नहीं लिख सके है. जितना माँ को समझ सका हूँ उसके अनुसार दावे के साथ कहा सकता हूँ कि उम्र भर माँ सिर्फ एक सवाल करती है ''तूने खाना खाया'' . इस सवाल और इसके जवाब के आस पास ही माँ कि दुनिया घूमती है. ये सवाल आपकी मां भी करती होगी किसी से रोजाना तो किसी  से उस फ़ोन पर जो आपने या उसने लगाया हो. कभी नहीं पूछती कि तू क्या काम करता है, कितना कमाता है. उसे बस एक ही चिंता है कि हम खुश रहे. उसे कभी हम गलत लगते ही नहीं या वो हमारी गलती देखती ही नहीं है और हम अपनी दुनिया में इतने मशगूल हो जाते है कि जिसके रक्त ने हमें सींचा उसे भूलने में एक पल भी नहीं लगाते और घर बैठी माँ का तिरस्कार  करने वाले हम मदर्स डे मना कर औपचारिकता निभा लेते है. मगर माँ के दिल में, उसके प्रेम में औपचारिकता की जगह ही नहीं है. उसकी ममतामयी नज़रें सिर्फ प्रेम बरसाना जानती है.

''जब दवाई काम न करे तो नज़र उतारती है, माँ है जनाब वो कहा मानती है''   

तभी तो माँ के प्रेम को तरसते ईश्वर ने भी मानव जीवन लिया और ममता के सागर की उन बूंदो अमूल्य कहते हुए माँ का दर्जा खुद से ऊपर बतलाया. तो जिसे ईश्वर ने पूजा उसे इंसान क्यों नकार रहा है, धुत्कार रहा है ये खुद से पूछा जाने वाला अमिट सवाल है. सिर्फ एक दिन माँ का आदर नहीं जीवन पर्यन्त उसके चरणों की वंदना करने का प्रण लेकर मदर्स डे को सार्थक बनाया जाना जरुरी है. 

खेर जो भी हो माँ तो माँ है. ...................................................................................
 

  ''माँ जिंदगी जीने का फन छोड़ जाती है, मरकर भी अपनापन छोड़ जाती है
         उम्रभर बेटे के साथ रहने की खातिर, बहु के हाथों
 में कंगन छोड़ जाती है '' 

 

 

Mother's Day: माँ जो कभी शब्दों में बयां हो नहीं सकती...

मीका के इस जवाब से खुश हुए सलमान

इस मदर्स डे पर करें अपनी मां के लिए कुछ खास


    

 

   

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