विवादित लेखक सआदत हसन मंटो की कहानियां अमर हैं। मंटो की कहानियों पर सालों से नाटक, लघु फिल्में बनाई जाती रही हैं। मंटो ने बंटवारे के दर्द को ऐसा बयां किया कि आज भी उनकी कहानियां कौतुहल का विषय बन गई। उनकी कलम यहीं नहीं रूकी उन्होंनें खुद ही अपने जाल में उलझे समाज और सिस्टम की परतों को अपने साहित्य में ऐसा उधेड़ा की उनका नाम हमेशा के लिए अमर हो गया।
यही कारण है कि उनके अमर साहित्य पर आज बड़े बजट की फिल्में बन रही है। अभिनेत्री और निर्माता निर्देशक नंदिता दास 2008 में फिराक जैसी चर्चित फिल्म बनाने के लगभग नौ साल बाद अब मंटो की बायोपिक बना रही हैं।नंदिता कहती हैं, मंटो की कहानियों पर तो सबने बात की लेकिन मंटो पर किसी ने बात नहीं की, कुछ नाटक जरूर हुए हैं लेकिन उनका जीवन, उनका मंटो बनने तक का सफर अभी भी किसी ने दिखाया नहीं है। फिल्म अभी स्क्रिप्ट के स्तर पर है, लेकिन मंटो के किरदार के लिए नवाजुद्दीन सिद्दीकी को चुना गया है।
नवाज के मुताबिक, मंटो के किरदार के साथ एक अच्छी बात ये है कि लोगों के मन में उनकी कोई छवि नहीं है, किसी ने उन्हें देखा नहीं है इसलिए मैं जैसा कर दूंगा लोग मंटो को वैसा मान लेंगे। लेकिन यही सबसे बड़ी चुनौती भी है क्योंकि मैं मंटो को नवाज नहीं, नवाज को मंटो बनाना चाहता हूं। केतन मेहता की यह फिल्म मंटो की प्रतिनिधि कहानी टोबा टेक सिंह पर आधारित है। फिल्म लंदन के एक फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई है। भारत में अभी इसका प्रदर्शन होना है।
फिल्म पाच्र्ड के निर्माता रहे असीम बजाज ने फिल्म निर्देशक आदित्य मोहन के साथ मिल कर फिल्म खोल दो बनाई है।