नई दिल्ली: नवम्बर 2015 को पेरिस सम्मेलन में एक समझौता हुआ था, जिसके तहत ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज जैसे मुद्दों पर चर्चा की गई थी और दुनिया के कई देशों ने इससे सम्बंधित एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इस समझौते के तहत धरती का तापमान दो फीसद तक कम करने और इसके लिए सभी देशों से कदम उठाने पर सहमति बनी थी. लेकिन इस समझौते के 3 वर्षों बाद भी हालात में कोई बदलाव नहीं आया है, उल्टा स्थिति गंभीर हो चली है, अगर वक़्त रहते ध्यान नहीं दिया गया तो दूसरे देशों के प्रदुषण की मार भी भारत ही झेलेगा.
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इसका खुलासा हुआ है ग्लोबल एफिशिएंशी इंटेलीजेंस की रिपोर्ट में, इस रिपोर्ट में बताया गया है कि यूरोप और अमेरिका स्टील, सीमेंट जैसे प्रदूषणकारी उत्पादों को भारत और चीन से आयात कर रहे हैं और इस तरह अपने यहां कार्बन उत्सर्जन में कमी ला रहे हैं और दूसरे देशों में प्रदूषण बढ़ा रहे हैं. दरअसल दूसरे यूरोपीय देशों ने ऐसे उत्पादों का निर्माण बंद कर दिया है, जो देश में प्रदुषण को बढ़ावा दें, इससे बचने के लिए वे आवश्यक उत्पाद दूसरे देशों से निर्यात कर रहे हैं, जिसमे भी भारत और चीन अव्वल हैं.
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इसको हम इस तरह से भी देख सकते हैं कि अमेरिकी कंपनियां भारत और चीन जैसे देशों में अपना प्लांट लगाएंगी और वहां पर सस्ते श्रम का पूरा फायदा उठाते हुए अपने लिए उत्पादन करेंगी, ऐसा करने पर वह प्रदूषण से भी बची रहेंगी. वहीं हमारे देशवासी इसे मेक इन इंडिया कहकर गर्व महसूस करेंगे. यूरोपीय देशों के इस कदम से रोजगार तो जरूर पैदा होगा लेकिन साथ ही वह पर्यावरण के खतरे के चरम पर पहुंच जाएंगे. वर्ष 2017 के अंत में सामने आई एक रिपोर्ट कहती है कि पिछले साल की तुलना में भारत में कार्बन उत्सर्जन में 2 फीसदी की वृद्धि हुई है. आपको बता दें कि कुल 41 अरब मेट्रिक टन कार्बन डाय ऑक्साइड उत्सर्जन में से 37 अरब के उत्सर्जन के लिए जीवाश्म ईंधन और उद्योग जगत जिम्मेदार हैं.
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