महेश्वर परियोजना : एनजीटी का फैसला, पहले पुनर्वास फिर बांध में पानी
महेश्वर परियोजना : एनजीटी का फैसला, पहले पुनर्वास फिर बांध में पानी
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भोपाल : मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी पर बन रही निजीकृत महेश्वर परियोजना के संबंध में राष्ट्रीय हरित न्यायाधीकरण नई दिल्ली (एनजीटी) ने एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा है कि महेश्वर बांध में तब तक गेट बंद कर पानी नहीं भरा जा सकता, जब तक कि परियोजना के प्रभावितों का संपूर्ण पुनर्वास न हो जाए। नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता आलोक अग्रवाल ने सोमवार को एक बयान जारी कर बताया है कि तत्कालीन परियोजनाकर्ता ने सन 2012 में गलत जानकारी देकर पर्यावरण मंत्रालय से महेश्वर बांध में 154 मीटर तक पानी भरने की अनुमति ले ली थी।

इस पर महेश्वर बांध प्रभावित अंतर सिंह और संजय निगम ने एनजीटी में इस अनुमति को चुनौती दी थी। एनजीटी ने सभी पक्षों की सुनवाई के बाद 28 अक्टूबर, 2015 को स्पष्ट आदेश दिया है कि जब तक संपूर्ण पुनर्वास पूरा नहीं हो जाता, तब तक महेश्वर बांध में तय ऊंचाई तक पानी नहीं भरा जा सकता, जब तक पुनर्वास पूरा नहीं हो जाता। साथ ही पुनर्वास पूरा होने के बाद गेट बंद करने के लिए एनजीटी से अनुमति लेनी होगी।

अग्रवाल के अनुसार, केंद्र और राज्य सरकार को दिए गए आदेश में न्यायाधीश यू़ डी़ साल्वी एवं विशेषज्ञ सदस्य रंजन चटर्जी की खंडपीठ ने कहा है कि मुख्य मुद्दा संबंधित परियोजना से जुड़े पुनर्वास के पूरा होने का है, एक मई 2001 को दी गई पर्यावरणीय मंजूरी के अनुसार, पुनर्वास का काम बांध निर्माण की प्रगति के साथ-साथ चलेगा। खंडपीठ ने कहा कि वर्तमान में निर्माण का कार्य पूरा हो गया है, लेकिन पुनर्वास के काम में निर्माण के साथ आवश्यक गति नहीं रखी गई है।

पुनर्वास का काम न होने का कारण परियोजनाकर्ता द्वारा जिम्मेदार एजेंसी को पैसा न देना है। हम पैसा उपलब्ध कराने के मुद्दे पर न जाते हुए निश्चित रूप से हम अपना आदेश पुन: दोहराना चाहते हैं कि पुनर्वास पूरा किए बगैर बांध के गेट बंद या गिराए नहीं जाएंगे, जिससे क्षेत्र डूब में आए। इस मामले को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करते हैं, पक्षों को छूट दी जाती है कि पुनर्वास का कार्य पूरा हो जाने के बाद वो बांध के गेट बंद करने की अर्जी कर सकते हैं।

प्रभावित याचिकाकर्ताओं की ओर से पैरवी करने वाले अधिवक्ता संजय पारीख ने कहा कि परियोजनाकर्ता लगातार भू-अर्जन और पुनर्वास के लिए आवश्यक राशि उपलब्ध कराने में असफल रहा है। पारीख ने एनजीटी को यह भी बताया कि 154 मीटर तक पानी भरने का आदेश यह झूठ कहकर लिया गया था कि इस ऊंचाई पर 120 मेगावाट बिजली बन सकती है, जबकि ट्रिब्यूनल में प्रस्तुत हाल के दस्तावेजों से स्पष्ट है कि टरबाइन बनाने वाली कंपनी बीएचईएल ने स्पष्ट किया है कि पूर्ण जलाशय स्तर 162़26 मीटर के पहले बिजली बनाना संभव नहीं है।

नर्मदा आंदोलन ने एनजीटी के आदेश का स्वागत करते हुए मांग की है कि इस आदेश के बाद सरकार अब नए भू-अर्जन कानून के अनुसार, प्रभावितों का भू-अर्जन कर संपूर्ण पुनर्वास करे। ज्ञात हो कि महेश्वर परियोजना से 61 गावों के 10,000 परिवार (60 हजार व्यक्ति) प्रभावित हो रहे हैं।

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