हाथरस केस: आखिर क्या होता है पॉलीग्राफ और नार्को टेस्ट ? जिससे भाग रहा पीड़ित परिवार
हाथरस केस: आखिर क्या होता है पॉलीग्राफ और नार्को टेस्ट ? जिससे भाग रहा पीड़ित परिवार
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नई दिल्ली: हाथरस मामले पर चौतरफा हमले झेल रही योगी सरकार कार्रवाई में जुटी हुई है। इससे पहले सीएम योगी ने ट्वीट करते हुए भी कहा था कि अपराधियों का समूल नाश सुनिश्चित है और ऐसी सजा मिलेगी, जो नजीर बनेगी। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यूपी सरकार सच्चाई जानने के लिए इस मामले में आरोपियों के साथ ही पीड़ित पक्ष का पॉलिग्राफ यानी लाइ-डिटेक्टर या फिर नार्को टेस्ट कराने की तैयारी में है, जिससे पीड़ित पक्ष लगातार इंकार करता आ रहा है। ऐसे में आइए समझते हैं कि आखिर क्या होते हैं पॉलिग्राफ या नार्को टेस्ट।

दरअसल, पॉलिग्राफ, नार्को और ब्रैन मैपिंग टेस्ट झूठ पकड़ने की एक तकनीक होती हैं। भारत में मई 2010 में सर्वोच्च न्यायालय ने इन जांचों को गैरकानूनी ठहरा दिया था। हालांकि, अदालत ने आपराधिक मामलों में इन जांचों को संबंधित व्यक्तियों की सहमति से करने की अनुमति दी है।  

पॉलिग्राफ टेस्ट:-
यह झूठ पकड़ने की एक तकनीक है, जिसमे संबंधित शख्स से पूछताछ होती है और जब वह जवाब देता है, उस समय एक विशेष मशीन की स्क्रीन पर कई ग्राफ बनते हैं। व्यक्ति की सांस, हृदय गति और ब्लड प्रेशर में परिवर्तन के हिसाब से ग्राफ ऊपर-नीचे होता है। कोई व्यक्ति झूठ बोल रहा है या सच? इसका उत्तर उसी ग्राफ में छिपा होता है। ग्राफ में अचानक असामान्य परिवर्तन नज़र आने लगे तो इसका मतलब है कि बंदा झूठ बोल रहा है। इस टेस्ट की शुरुआत में बेहद सामान्य प्रश्न पूछे जाते हैं, जैसे- नाम, पिता का नाम, उम्र, पता और परिवार से संबंधित जानकारियां। फिर अचानक संबंधित जुर्म के बारे में सवाल किया जाता है। अचानक इस तरह से अपराध से संबंधित सवाल पर यदि शख्स की धड़कन, सांस या बीपी बढ़ जाती है और ग्राफ में परिवर्तन दिखता है। यदि ग्राफ में बदलाव है तो इसका मतलब वह झूठ बोल रहा है और यदि बदलाव नहीं दिख रहा तो वह सही बोल रहा है। आसान भाषा में कहा जाए तो ये झूठ बोलते वक़्त व्यक्ति के भीतर पैदा होने वाले भय का आंकलन करके फैसला लेता है। 

नार्को टेस्ट:-
यह भी झूठ पकड़ने की एक तकनीक है। इसमें संबंधित व्यक्ति को कुछ दवाइयां या इंजेक्शन दिए जाते हैं। अमूमन ट्रूथ ड्रग नाम की एक साइकोऐक्टिव दवा दी जाती है या फिर सोडियम पेंटोथोल का इंजेक्शन दिया जाता है। इस दवा के प्रभाव से शख्स अर्धबेहोशी की स्थिति में चला जाता है यानी न उसे पूरी तरह होश होता है और न ही वह पूरी तरह बेहोश रहता है। इस स्थिति में वह सभी सवालों का सही-सही जवाब देता है क्योंकि वह अर्धबेहोशी के कारण वह झूठी कहानी गढ़ पाने में विफल हो जाता है।

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