जानिए अहिल्या बाई होल्कर के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें
जानिए अहिल्या बाई होल्कर के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें
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महारानी अहिल्याबाई इतिहास-प्रसिद्ध सूबेदार मल्हारराव होलकर के पुत्र खंडेराव की पत्नी थीं. इनका जन्म 31 मई सन् 1725 को जामखेड में हुआ था. अहिल्याबाई किसी बड़े भारी राज्य की रानी नहीं थीं. उनका कार्यक्षेत्र अपेक्षाकृत सीमित था. फिर भी उन्होंने जो कुछ किया, उससे आश्चर्य होता है. 31 मई 2015 को मध्यप्रदेश में 290 वीं जयंती का विशाल आयोजन किया जायेगा.

दस-बारह वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ. उनतीस वर्ष की अवस्था में विधवा हो गईं. पति का स्वभाव चंचल और उग्र था. वह सब उन्होंने सहा. फिर जब बयालीस-तैंतालीस वर्ष की थीं, पुत्र मालेराव का देहांत हो गया. जब अहिल्याबाई की आयु बासठ वर्ष के लगभग थी, दौहित्र नत्थू चल बसा. चार वर्ष पीछे दामाद यशवंतराव फणसे न रहा और इनकी पुत्री मुक्ताबाई सती हो गई. दूर के संबंधी तुकोजीराव के पुत्र मल्हारराव पर उनका स्नेह था; सोचती थीं कि आगे चलकर यही शासन, व्यवस्था, न्याय औऱ प्रजारंजन की डोर सँभालेगा, पर वह अंत-अंत तक उन्हें दुःख देता रहा. उन्होंने बघेल समाज़ में जन्म लिया था.

योगदान - अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मंदिर बनवाए, घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, मार्ग बनवाए-सुधरवाए, भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्यक्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन हेतु की. इंदौर में प्रति वर्ष भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी के दिन अहिल्योत्सव होता चला आता है. अहिल्याबाई जब 6 महीने के लिये पूरे भारत की यात्रा पर गई तो ग्राम उबदी के पास स्थित कस्बे अकावल्या के पाटीदार को राजकाज सौंप गई, जो हमेशा वहाँ जाया करते थे. उनके राज्य संचालन से प्रसन्न होकर अहिल्याबाई ने आधा राज्य देेने को कहा परन्तु उन्होंने सिर्फ यह मांगा कि महेश्वर में मेरे समाज के लोग यदि मुर्दो को जलाने आये तो कपड़ो समेत जलाये.

विचारधाराएं - अहिल्याबाई के संबंध में दो प्रकार की विचारधाराएँ रही हैं. एक में उनको देवी के अवतार की पदवी दी गई है, दूसरी में उनके अति उत्कृष्ट गुणों के साथ अंधविश्वासों और रूढ़ियों के प्रति श्रद्धा को भी प्रकट किया है. वह अँधेरे में प्रकाश-किरण के समान थीं, जिसे अँधेरा बार-बार ग्रसने की चेष्टा करता रहा. अपने उत्कृष्ट विचारों एवं नैतिक आचरण के चलते ही समाज में उन्हें देवी का दर्जा मिला.

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