ऐसे हुई थी भगवान भैरव की उत्पत्ति
ऐसे हुई थी भगवान भैरव की उत्पत्ति
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हिन्दू धर्म में सभी देवी-देवताओं की पूजा का विधान है, मगर इनमें सबसे शीघ्र खुश होकर आपको बड़ी से बड़ी समस्याओं से निकालने वाले कोई देवता हैं तो वो हैं भगवान भैरव। रुद्रयामल तंत्र में 64 भैरव का उल्लेख प्राप्त होता है मगर अमूमन लोग भैरव के दो स्वरूप की अधिक पूजा करते हैं। जिनमें से एक हैं बटुक भैरव तथा दूसरे काल भैरव। तंत्र ग्रंथों में भगवान भैरव की उत्पत्ति महादेव से मानी गई है, जिनकी आराधना करने वाले भक्तों को जिंदगी में कभी भी कोई भय नहीं सताता है।

बटुक भैरव का स्वरूप:-
बटुक भैरव स्फटिक के समान शुभ्र वर्ण वाले हैं। उन्होंने अपने कानों कुण्डल पहना हुआ हुआ है तथा दिव्य मणियों से से सुशोभित हैं। बटुक भैरव खुश मुख वाले तथा अपनी भुजाओं में अस्त्र-शस्त्र धारण किए होते हैं। उनके गले में माला शोभायमान हैं।

कैसे हुई बटुक भैरव की उत्पत्ति:-
प्रथा है कि प्राचीन काल में एक आपद् नामक राक्षस था। जिसने कठिन तपस्या करके यह वर प्राप्त कर लिया कि उसकी मृत्यु सिर्फ 5 साल के बालक से ही हो सकती है तथा वह किसी अन्य प्राणी से नहीं मारा जा सकता है। तत्पश्चात, उसने तीनों लोकों में आतंक फैला दिया। ऐसे में जब सभी देवता इस दिक्कत का समाधान तलाशने का विचार कर रहे थे तभी उन देवताओं के शरीर से एक-एक तेजोधारा निकली तथा उससे एक पंचवर्षीय बटुक की उत्पत्ति हुई, जिसमें अद्भुत तेज था। इसी बटुक ने फिर बाद में आपद् नामक राक्षस का नाश किया तथा बाद में आपदुद्धारक बटुक भैरव के नाम से जाने गये।

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