नहीं रहा दुनिया का पहला 'शाकाहारी' मगरमच्छ ! 70 वर्षों से केवल मंदिर का प्रसाद खाता था 'बाबिया'
नहीं रहा दुनिया का पहला 'शाकाहारी' मगरमच्छ ! 70 वर्षों से केवल मंदिर का प्रसाद खाता था 'बाबिया'
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कोच्ची: केरल के 'शाकाहारी' मगरमच्छ बाबिया का कासरगोड के श्री आनंदपद्मनाभ स्वामी मंदिर में आज सोमवार (10 अक्टूबर) को देहांत हो गया। यह मगरमच्छ मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए 75 वर्षों से मुख्य आकर्षण का केंद्र था। मंदिर के पुजारियों के मुताबिक, 'दिव्य' मगरमच्छ अपना ज्यादातर वक़्त गुफा के अंदर बिताता था और दोपहर में बाहर निकलता था। 

एक धार्मिक मान्यता के मुताबिक, मगरमच्छ बाबिया उस गुफा की रक्षा करता था, जिसमें भगवान गायब हो गए थे। मंदिर प्रबंधन ने बताया है कि, बाबिया दिन में दो दफा परोसे जाने वाले मंदिर के प्रसादम को ही खाता था। इसलिए उसे शाकाहारी मगरमच्छ कहा जाने लगा। दरअसल, मान्यता है कि सदियों पहले एक महात्मा इसी श्री आनंदपद्मनाभ स्वामी मंदिर में तपस्या करते थे। इस दौरान भगवान कृष्ण बालक का रूप धरकर आए और अपने शरारतों से महात्मा को परेशान करने लगे। इससे गुस्साए तपस्वी ने उन्हें  मंदिर परिसर में स्थित तालाब में धकेल दिया। किन्तु जब ऋषि को गलती का अहसास हुआ, तो उन्होंने तालाब में उस बच्चे को तलाश किया, मगर पानी में कोई नहीं मिला और एक गुफानुमा दरार नज़र आई। मान्यता है कि भगवान उसी गुफा से गायब हो गए थे। कुछ देर बाद उसी गुफा से निकलकर एक मगरमच्छ बाहर आने लगा।  

मगरमच्छ बाबिया तालाब में रहने के बाद भी मछलियों को और अन्य जलीय जीवों को नहीं खाता था। दिन में दो बार वह भगवान के दर्शन करने निकलता था और भक्तों में बांटे जाने वाले चावल और गुड़ के 'प्रसादम' को खाता था।  बाबिया ने कभी भी किसी इंसान या दूसरे जीव जंतु को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया और वह मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की तरफ  से दिए गए फल इत्यादि शांति से खा लेता था। फिर पुजारी के इशारा करते ही तालाब में स्थित गुफानुमा दरार में जाकर बैठ जाता था।  

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