'पुलिस में दो पद ट्रांसजेंडर्स के लिए रखो वरना रोकी जाएगी भर्ती प्रक्रिया', सरकार को कोर्ट ने दी चेतावनी
'पुलिस में दो पद ट्रांसजेंडर्स के लिए रखो वरना रोकी जाएगी भर्ती प्रक्रिया', सरकार को कोर्ट ने दी चेतावनी
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मुंबई: बॉम्बे उच्च न्यायालय ने गृह विभाग के तहत ट्रांसजेंडरों के लिए पद निर्मित करने के मामले में महाराष्ट्र सरकार को फटकारा है। उन्होंने ट्रांसजेंडरों के लिए दो पद न रखे जाने पर नाराजगी जताई तथा पूरी भर्ती प्रक्रिया रोक देने की चेतावनी दी। बॉम्बे उच्च न्यायालय की एक बेंच ने कहा- सात वर्षों से, यह सरकार गहरी नींद में है। आप अपने काम नहीं करते हैं तथा पीड़ित व्यक्तियों को अदालतों में आना पड़ता है। जब अदालतें आदेश पारित करती हैं, तो हम पर अतिक्रमण का आरोप लगाया जाता है। 

बृहस्पतिवार को मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता एवं न्यायमूर्ति अभय आहूजा की पीठ ने राज्य सरकार को फटकारते हुए स्पष्ट रूप से चेतावनी दी कि यदि सरकार ने नरमी नहीं बरती ततः कम से कम दो ट्रांसजेंडरों के लिए दो पद खाली नहीं रखे तो अदालत पूरी भर्ती प्रक्रिया को रोक सकती है। दरअसल, पुलिस कांस्टेबल की भर्ती के लिए फार्म न भर पाने पर मामले को लेकर ट्रांसजेंडरों ने महाराष्ट्र प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (एमएटी) का दरवाजा खटखटाया था। पीठ ने कहा, "आप नियम नहीं बनाएंगे तथा आप उन्हें (ट्रांसजेंडर) को सम्मिलित नहीं करेंगे तो हम प्रक्रिया पर रोक लगा देंगे, फिर आपको नियम बनाने के लिए मजबूर किया जाएगा।" 

बता दें कि 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने सार्वजनिक पदों को भरने के चलते ट्रांसजेंडरों की भर्ती के लिए कहा था। कई प्रदेशों ने इसे लागू किया है जबकि महाराष्ट्र ने ऐसा नहीं किया। बीते महीने, एक ट्रांसजेंडर ने MAT से  संपर्क किया था जिसने बताया कि वे भर्ती फॉर्म नहीं भर सके क्योंकि तीसरे लिंग का विकल्प उपलब्ध नहीं था। जबकि एमएटी ने प्रदेश सरकार को  पहले ही यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति फॉर्म भरने में सक्षम हों तथा उनके पास भर्ती होने का अवसर रहे। एमएटी ने यह भी कहा था कि सरकार को ट्रांसजेंडरों के लिए शारीरिक मानक एवं जांच का मानदंड तय करना चाहिए। हालांकि प्रदेश ने यह कहते हुए एमएटी के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया कि उनकी भर्ती प्रक्रिया पहले से ही चल रही है और वे इस वक़्त अन्य लिंग के सदस्यों की भर्ती नहीं कर सकते हैं। सरकार ने अपनी याचिका में दावा किया था कि ट्रिब्यूनल के निर्देश को लागू करना "बेहद मुश्किल" था क्योंकि प्रदेश सरकार ने अभी तक ट्रांसजेंडरों की भर्ती के लिए विशेष प्रावधानों के सिलसिले में कोई नीति नहीं बनाई है।

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