सब आनंद में थे। 16 जून 2013 की शाम को अचानक पानी बढ़ गया था। वहीं लग रहा था कि धीरेे-धीरे सब शांत हो जाएगा। रात भर हम सोये नहीं थे। मंदिर के पीछे आनंदगिरी का आश्रम भी बह गया।17 जून को सुबह पांच बजे जब मैने मंदिर की ओर जाना शुरू किया तो देखा तो चारो ओर लाशों का ढेर लगे हुए थे। बाजार ठीक था। मैने मंदिर की ओर बढ़ना शुरू किया। चारों और तबाही का ही नजारा था।मंदिर और आसपास के कई भवन बचे हुए थे।
आपकी जानकारी के लिए बता दें की हम स्थिति का ही जायजा ले रहे थे कि अचानक एक बवंडर उठा। मैं एक मकान की दूसरी मंजिल में पहुंच गया। दो मिनट के अंदर ही जो कुछ बचा था, वह भी तबाह हो गया।चारों और मलबा और पानी। बिरला की धर्मशाला, अन्नपूर्णा मंदिर, सहारा का गेस्ट हाउस सब कुछ तबाह हुआ। मंदिर के पीछे एक बड़ी शिला आकर टिक गई थी। मंदिर के आगे नंदी गण, गणेश परिवार सुरक्षित थे।मैंने मंदिर के अंदर पैर रखा तो दलदल का अहसास हुआ। गौर से देखा तो महादेव शिला का ऊपरी सिरा नजर आया।
वहीं से प्रणाम कर लौट आया।मैने कई लोगों को दम तोड़ते देखा। कुछ नहीं कर सकता था। पानी का वेग इतना था कि लोगों के कपड़े तक उतर गए। 19 जून को सबसे पहले हेली सर्विस केदारनाथ पहुंची। (केदारनाथ की आपदा के दौरान पुरोहित श्रीनिवास पोस्ती केदारनाथ में ही मौजूद थे। पोस्ती तीन बाद हेली सर्विस के जरिए केदारनाथ से निकाले गए। उनका अनुभव उन्हीं की ज़ुबानी)
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