कार्वी घोटाले ने निवेशक और ब्रोकर के रिश्ते की बुनियाद को हिला दिया
कार्वी घोटाले ने निवेशक और ब्रोकर के रिश्ते की बुनियाद को हिला दिया
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भारत में इक्विटी निवेश का मतलब है कि कंपनियों के बारे में अधिक से अधिक जांच-पड़ताल की जाए। पर अब कार्वी ब्रोकिंग घपला सामने आने के बाद निवेशक के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह न सिर्फ कंपनियों के बारे में अच्छी तरह से जांच पड़ताल कर लीजिये , बल्कि अपने ब्रोकर पर भी नजर रखे। अपनी तमाम चिंताओं के साथ अब आपको इस बात की चिंता भी करनी चाहिए कि हो सकता है कि ब्रोकर आपके शेयर बेच ले और मिली रकम खुद रख ले। सेबी की जांच में जो बातें सामने आई हैं उनके मुताबिक कार्वी स्टॉक होल्डिंग ने अपने ग्राहकों के सैकड़ो करोड़ रुपये के शेयरों के साथ यही किया है। उपभोक्ताओं के डिपॉजिटरी अकाउंट से शेयर ट्रांसफर किए गए, उन्हें बेचा गया और मिली रकम को कार्वी के रियल एस्टेट बिजनेस में ट्रांसफर कर दिया गया।

सेबी की जांच में अब तक जो बातें सामने आई हैं, उसके हिसाब से यह बड़े पैमाने पर डकैती का मामला है। भारत के इक्विटी मार्केट में यह एक तरह से दुष्कर्म है, और अपनी तरह का सबसे बड़ा दुष्कर्म है। परन्तु इस घपले के बारे में सबसे अधिक परेशान करने वाली बात यह है कि इसे अंजाम देने वालों के पास यह गलत काम करने का अधिकार था। जब शेयर के असली मालिकों को पता चला कि उनके शेयर बेच दिए गए हैं, तब सारा घपला सामने आया और इसमें लंबा समय लगा। अजीब बात है कि इंडस्ट्री से जुड़े हर व्यक्ति के साथ-साथ नियामक ने भी ऐसे हालात को स्वीकार कर लिया है। आपके लिए ‘पावर ऑफ अटॉर्नी’ पर साइन किए बिना डीमैट अकाउंट खुलवाना और इक्विटी में निवेश करना असंभव है। आपको इसके लिए आपको अपने ब्रोकर को पावर ऑफ अटॉर्नी देनी ही होगी।

मैं आपको व्यक्तिगत अनुभव बता रहा हूं। कुछ साल पहले मैंने ऐसा ब्रोकरेज अकाउंट तलाशना शुरू किया जहां पावर ऑफ अटॉर्नी साइन करके ब्रोकर को नहीं देनी पड़े। काफी समय बर्बाद करने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि ऐसा अकाउंट पाना और इसे इस्तेमाल करना संभव नहीं है। समस्या की जड़ यही है। शेयरों में निवेश करने के लिए आपको अपने निवेश का नियंत्रण हर हाल में ब्रोकर को देना है।

शॉर्ट टर्म के लिए ट्रेडिंग करने वालों या मार्जिन पर ट्रेडिंग करने वालों के लिए यह व्यवस्था ठीक है, क्योंकि ब्रोकर को विशेष परिस्थितियों में आपकी मंजूरी के बिना निवेश बेचने की जरूरत पड़ सकती है। पर सबके लिए यह व्यवस्था सही नहीं है। मेरी तरह बहुत से निवेशक पूरी रकम का भुगतान करके शेयर खरीदते हैं और महीनों या बरसों तक उसे होल्ड करते हैं। मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि ऐसे निवेशकों को अपने निवेश का पावर ऑफ अटॉर्नी अधिकार आखिर ब्रोकर को देना ही क्यों देना पड़ता है?

बहुत से निवेशक जिनको मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं और जो वैल्यू रिसर्च स्टॉक एडवाइजर का उपयोग करते हैं, इसी कैटेगरी में आते हैं। सेबी को यह सुनिश्चित करने के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए कि ऐसे निवेशकों को निवेश पर अपना अधिकार ब्रोकर को नहीं देना पड़े। ब्रोकर्स के लिए ऐसे निवेशक बिजनेस के लिहाज से बेकार हैं क्योंकि वे बहुत कम या करीब नहीं के बराबर ट्रेड करते हैं। नियामक की जिम्मेदारी है कि वे ऐसे निवेशकों के हितों का ध्यान रखे।

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