'जज को सजा देने से पहले सोचना था..', मानहानि केस दाखिल होने के 4 साल बाद राहुल गांधी को मिला नया तर्क
'जज को सजा देने से पहले सोचना था..', मानहानि केस दाखिल होने के 4 साल बाद राहुल गांधी को मिला नया तर्क
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सूरत: मानहानि मामले में 2 साल की सजा मिलने और लोकसभा सदस्यता जाने के बाद राहुल गांधी को इस मामले में एक नया तर्क मिला है। केस दाखिल होने के 4 साल बाद राहुल ने कहा है कि, मेरे खिलाफ मानहानि केस दाखिल करने का हक सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही है। हर कोई केस दाखिल नहीं कर सकता। राहुल ने अपनी याचिका में ये भी कहा कि फैसला देने वाले जज को भी सोचना चाहिए था कि जो वो करने जा रहे हैं, उससे मेरी लोकसभा सदस्यता ख़त्म हो जाएगी।

बता दें कि, राहुल गांधी को गुजरात के सूरत की एक अदालत ने मोदी सरनेम वाले मानहानि मामले दो साल जेल की सजा सुनाई थी। इसके बाद वे लोकसभा में 'अयोग्य' घोषित हो गए थे। ये केस 2019 में दाखिल किया गया था। उनके खिलाफ भाजपा नेता पूर्णेश मोदी ने याचिका दाखिल की थी। उनका कहना था कि कोलार में एक जनसभा के दौरान राहुल ने कहा था कि नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी। सभी चोरों के नाम के साथ मोदी क्यों लगा है। इस पर याचिकाकर्ता पूर्णेश मोदी का कहना था कि राहुल गांधी के बयान से पूरे मोदी समाज को आघात पहुंचा है। जिसके बाद सूरत की अदालत ने राहुल गांधी को अपने फैसले में दोषी मान सजा सुना दी।

राहुल गांधी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आरएस चीमा, कीर्ति पनावाला और तरन्नुम चीमा ने अदालत में अपनी दलीलें पेश कीं। उनका कहना था कि राहुल गांधी के बयान पर पूर्णेश मोदी को केस दाखिल करने का अधिकार ही नहीं है। नरेंद्र मोदी ही IPC के सेक्शन 499 के तहत ऐसा कर सकते थे। राहुल गांधी का कहना था कि (जज) हदिरेश वर्मा को सजा सुनाने से पहले सोचना चाहिए था कि उनका फैसला किस प्रकार का प्रभाव डालने जा रहा है। उन्हें अच्छी तरह से पता था कि मानहानि मामले में दो साल की सजा सुनाने से मेरी लोकसभा सदस्यता चली जाएगी। जज को इस बारे में सोचना चाहिए था।

हालाँकि, यहाँ गौर करने वाली बात ये भी है कि, ये केस चार सालों से चल रहा है और राहुल गांधी आज जो तर्क दे रहे हैं, वो कोर्ट में पहले भी दे सकते थे। वो कोर्ट में कह सकते थे कि, पूर्णेश मोदी को उनके खिलाफ याचिका दाखिल करने का हक ही नहीं है, तो हो सकता है कोर्ट उसका जवाब देती, या उस हिसाब से सुनवाई करती या केस वहीं खत्म हो जाता, और अदालत का समय भी बर्बाद नहीं होता। लेकिन, उस समय राहुल या उनके वकीलों ने कोर्ट में इस तरह की कोई दलीलें नहीं दी, अब केस के 4 साल होने और सजा मिलने तथा लोकसभा सदस्यता जाने के बाद राहुल गांधी ये दलील दे रहे हैं। अब देखना ये है कि, अदालत इस मामले पर क्या बोलती है।  

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