ISRO चीफ बोले-  बीजगणित, धातु विज्ञान, विमान विज्ञान जैसी कई चीज़ें वेदों में मौजूद, 6वीं सदी के 'सूर्य सिद्धांत' में बहुत रहस्य
ISRO चीफ बोले- बीजगणित, धातु विज्ञान, विमान विज्ञान जैसी कई चीज़ें वेदों में मौजूद, 6वीं सदी के 'सूर्य सिद्धांत' में बहुत रहस्य
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उज्जैन: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के प्रमुख एस। सोमनाथ ने दुनिया के सबसे प्राचीन धर्मग्रन्थ वेद और सबसे प्राचीन भाषाओं में शामिल संस्कृत को लेकर बेहद महत्वपूर्ण बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि 'बीजगणित, वर्गमूल, समय की अवधारणा, वास्तुकला, ब्रह्मांड की संरचना, धातु विज्ञान और यहां तक कि विमानन जैसी वैज्ञानिक अवधारणाएं सबसे पहले वेदों में पाई गई थीं।'

भारत से ज्ञान यूरोप पहुंचा और फिर आधुनिक साइंस बनकर आया:-

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ISRO के अध्यक्ष मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित सोमनाथ महर्षि पाणिनि संस्कृत और वैदिक विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को उनके दीक्षांत समारोह को संबोधित करने पहुंचे थे, इस दौरान उन्होंने कहा कि ये भारतीय खोजें अरब देशों के जरिए यूरोप पहुंचीं और फिर वहां से इसी ज्ञान को आधुनिक साइंस बताकर हमारे सामने पेश किया गया। ISRO चीफ एस सोमनाथ ने कहा कि ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि उस वक़्त संस्कृत एक मौखिक भाषा हुआ करती थी और बाद में लोगों ने इसके लिए देवनागरी लिपि का इस्तेमाल करना शुरू किया। सोमनाथ ने कहा कि ऐसा माना जाता है कि महर्षि पाणिनि ने संस्कृत व्याकरण के नियमों को लिपिबद्ध किया था और भाषा के वाक्य-विन्यास और संरचना ने इसे ‘वैज्ञानिक विचारों और प्रक्रियाओं को प्रकट करने’ के लिए आदर्श बनाया।

संस्कृत में ही लिखे गए खगोल, चिकित्सा और वैमानिकी विज्ञान:-

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के लिए संस्कृत की उपयुक्तता और अन्य तरह के कोड लिखने के संबंध में बात करते हुए उन्होंने कहा कि, ‘इंजीनियरों और वैज्ञानिकों को संस्कृत काफी पसंद है। संस्क्रृत कंप्यूटर की भाषा को अच्छी तरह सूट करती है और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सीखने वाले भी इसे सीखते हैं। गणना के लिए संस्कृत का इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है, इस पर बहुत शोध चल रहा है।’ ISRO चीफ ने आगे कहा कि संस्कृत के अन्य बहुत से लाभ भी हैं और ये विज्ञान से परे हैं। उन्होंने कहा कि, ‘संस्कृत में लिखा गया भारतीय साहित्य अपने मूल तथा दार्शनिक रूप में अत्यंत समृद्ध है। वैज्ञानिक रूप में भी यह बेहद अहम है। संस्कृत में सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक अध्ययन का कोई मतभेद नहीं है।’ उन्होंने कहा कि संस्कृत में वैज्ञानिकों के योगदान की छाप हजारों सालों की भारतीय संस्कृति की यात्रा में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। ISRO चीफ ने बताया कि, ‘खगोल विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, भौतिकी, रसायन विज्ञान और वैमानिकी विज्ञान में निष्कर्ष संस्कृत में लिखे गए थे, मगर उनका पूरी तरह से शोध नहीं किया गया था।’

8वीं सदी की पुस्तक सूर्य सिद्धांत में सौर प्रणाली के कई रहस्य:-

इसके साथ ही ISRO चीफ ने सूर्य सिद्धांत का भी उदाहरण दिया, जो कि खगोल विज्ञान पर एक प्राचीन भारतीय पुस्तक है, जिसके संबंध में माना जाता है कि यह शायद 6वीं शताब्दी का संकलन है। उन्होंने कहा कि, यह पुस्तक विशेष तौर पर सौर प्रणाली के संबंध में बताती है, किस तरह सभी ग्रह सूर्य के चारों तरफ घूमते हैं, इसकी गति की अवधि, घटनाओं से संबंधित समय आदि। ये पूरा ज्ञान 6वीं सदी से हमारे पास था।’ एस सोमनाथ ने कहा कि, ‘एक रॉकेट साइंटिस्ट होने के नाते मैं संस्कृत में इस पुस्तक से प्रभावित था, जो सौर मंडल, समय-मान और पृथ्वी के आकार और परिधि के संबंध में कई रहस्य खोलती है।’ 

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