''सिनेमा मेरी मोहब्बत है, एक वक़्त के बाद मैंने अपनी मोहब्बत के साथ होना ज़रूरी समझा''-अविनाश दास
''सिनेमा मेरी मोहब्बत है, एक वक़्त के बाद मैंने अपनी मोहब्बत के साथ होना ज़रूरी समझा''-अविनाश दास
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''हीर-रांझे, रोमियो-जूलियट और लैला-मजनू की प्रेम कहानी किस्सों से आप सभी रूबरू हैं। आमतौर पर इनकी नाकामयाब मोहब्बत इन्हें बेहद चर्चित और विश्वव्यापी बना दिया। रांझे, रोमियो और मजनूँ के दर्जें के एक ऐसे आशिक़ से आपको रूबरू कराएँगे जिसकी हर सांस में, हर आहट में और हर अज़ाब में यह प्रेमिका धड़कती है। लेकिन इस आशिक़ की प्रेमिका हीर, जूलियट और लैला की तरह कमसिन और हसीं कोई लड़की नहीं बल्कि सिनेमा है। जिसे वह अपनी पहली और अंतिम मोहब्बत का नाम देते हैं। जिन्होंने एक वक़्त के बाद अपनी मोहब्बत के साथ होना ज़रूरी समझा। यह शख़्सियत है, फिल्म 'अनारकली ऑफ़ आरा' से बॉलीवुड में डेब्यू करने जा रहे डायरेक्टर अविनाश दास। इस फिल्म में स्वरा भास्कर, संजय मिश्रा और पंकज त्रिपाठी जैसे मंझे हुए कलाकार हैं। यह फिल्म  24 मार्च को रिलीज़ होगी।'' 


डायरेक्टर अविनाश दास से सिनेमा और अपनी फिल्म 'अनारकली ऑफ़ आरा' पर एक  चर्चा -

-पत्रकारिता से फिल्म डायरेक्शन की और मुड़ने की जरुरत क्यों हुई? वह कौनसी बात हैं जो सिनेमा के जरिये लोगों तक पहुँचाना चाहते हो?

अविनाश दास - मैंने तक़रीबन सत्रह साल प्रिंट और टीवी मीडिया में काम किया है। वहीं से मुझे एक नज़रिया, एक समझ, एक सोच और एक कहानी मिली। जो कहानियां हम वहां कहते रहे, उसका कैनवास बड़ा करने के लिए एक बड़ी छतरी की ज़रूरत महसूस हुई। दरअसल, अपनी स्टोरी को एक व्यापकता देने के लिए मैंने फिल्मों की तरफ़ रुख किया। एक कारण और भी जिसने मुझे सिनेमा में आने के लालायित किया। वह कारण था सिनेमा से बचपन की मोहब्बत। एक वक़्त के बाद मैंने अपनी मोहब्बत के साथ होना ज़रूरी समझा।

-फिल्म 'अनारकली ऑफ़ आरा' की कहानी के बारे में कुछ बताये?

अविनाश दास -मुझे मालूम तब यूट्यूब नया-नया ही था, मैंने ताराबानो फ़ैज़ाबादी का एक गाना सुना। यह एक हाइली इरोटिक गाना था लेकिन गायिका के चेहरे पर कोई भाव नहीं था। फिर मैंने उस भाव-भूमि पर एक कहानी सोची। लिखी नहीं। अगले छह-सात सालों में स्ट्रीट सिंगर से जुड़े कई हादसे हिंदुस्तान में हुए और यह कहानी पकती रही। आख़िरकार मैंने जो पटकथा लिखी, उसमें एेसी गायिकाओं के आत्मसम्मान की कहानी निकल कर सामने आयी। हमारी 'अनारकली' के साथ कोई नहीं है, लेकिन वह ख़ुद अपने साथ शिद्दत के साथ खड़ी है।

 -अपने बचपन के बारे बताये? पत्रकारिता से फिल्म डायरेक्टर बनने तक के सफ़र के बारे में बताये ?

अविनाश दास -मेरा बचपन ख़ुशहाल नहीं था। बाबूजी प्राइवेट स्कूल में मास्टर थे। ट्यूशन भी पढ़ाते थे। मेरी चाल समय के साथ बेढ़ंगी हो चली। ज़्यादा पढ़-लिख नहीं पाया। आपको हैरानी होगी कि मैंने आज तक किसी प्रतियोगिता परीक्षा में हिस्सा नहीं लिया। बाबूजी के कारण भाषा को लेकर मेरी सजगता बचपन से बनी हुई थी, तो बीए करते हुए ही मैंने पत्रकारिता शुरू कर दी। थिएटर का भी शौक था, तो थिएटर भी करता रहा। मनोज बाजपेयी से उन्हीं दिनों मेरी जान-पहचान हुई। बाद में हम अच्छे दोस्त बन गये। मैं 2004 में भी मुंबई आया था स्ट्रगल के लिए - लेकिन तब किसी ने भाव नहीं दिया। तो दिल्ली लौट कर एनडीटीवी ज्वाइन कर लिया। लेकिन 2012 में मैंने तय कर लिया कि जो भी हो - अब फिल्म बनानी है। इतने ज़िल्लत भरे सफ़र के बाद आख़िरकार मैंने बड़ी शिद्दत से 'अनारकली' की कहानी लिखी।

 -साहित्य के प्रति भी आपका रुझान रहा हैं, ग़ज़ल भी आप कहते हैं,और अचानक फिल्मों में आना?

अविनाश दास-सिनेमा भी एक तरह का आधुनिक साहित्य ही है। मेरे सिनेमेटोग्राफर अरविंद कन्नाबिरन एक दिन मुझसे कह रहे थे कि कैमरा वर्क कितना भी शानदार कर लो - अगर कहानी में इमोशन नहीं है - तो वह फ्लाॅप शो है। वह बड़े सिनेमेटोग्राफर हैं। मेरी कहानी सुन कर ही मेरे साथ काम करने के लिए तैयार हुए। चूंकि 'अनारकली आॅफ आरा' एक म्यूजिकल फिल्म है, मुझे इस फिल्म को बनाने में रचनात्मक किस्म का आनंद आया। शायद यही वजह है कि सिनेमा में मेरी दस्तक हुई। 

-आपके पत्रकारिता के साथियों का मानना है कि आपके फिल्मों के शौक़ ने एक अच्छा पत्रकार खो दिया। इसको कैसे देखते हैं ?

अविनाश दास -व्यक्ति के मुग़ालते ज़रूर बड़े हों, लेकिन हमेशा संस्थान और समय बड़ा होता है। मेरे जैसे हज़ारों पत्रकार हैं इस देश में। लेकिन पत्रकारिता के अनुभवों को सिनेमा में रूपांतरित करना भी ज़रूरी काम था मेरे लिए। वैसे, सोशल मीडिया के उजाले में किसी के भीतर का पत्रकार नहीं मर सकता। हम जैसे लोग अलग-अलग काम करते हुए आज ज़्यादा निर्भीकता से खुद को वहां अभिव्यक्त कर रहे हैं।

-आपका अगला प्रोजेक्ट ?

अविनाश दास - मैं इन दिनों एक लव स्टोरी लिख रहा हूँ। यह कहानी पेस्टीसाइड्स की वजह से पंजाब के नष्ट हुए खेतों और उसकी वजह से मरते हुए गांवों के बैकड्राॅप की एक प्रेम कहानी है। इसी साल यह फिल्म फ्लोर पर जानी है।

-पहली फिल्म बनाने में क्या अड़चनें आई ?

अविनाश दास -बेशक! अड़चनें तो कई आयीं, लेकिन टीम के हौसलों में कोई कमी नहीं थी। सबसे पहले तो कई प्रोड्यूसर आये, गये। अंतत: जो खड़े हुए - उन्होंने फिल्म पूरी होने के चार महीने के भीतर इसे रिलीज़ के मुकाम पर ला दिया। हां, शूट के वक्त कोहरों ने बहुत परेशान किया था।

-फिल्म में स्वरा भास्कर, पंकज त्रिपाठी, संजय मिश्रा को लेने का कारण ?

अविनाश दास -ये हमारे दौर के बेहतरीन अभिनेता हैं। मेरी क्या औक़ात जो मैं इन्हें चुनूं। आप कह सकते हैं कि इन लोगों ने मेरे साथ काम करना चुना।

-वर्तमान भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा परिवर्तन क्या नज़र आता है?

अविनाश दास -भारतीय सिनेमा ज़्यादा यथार्थवादी हुआ है।

-किस तरह की फ़िल्में आप बनाना चाहते हैं ? आपके फेवरेट डायरेक्टर और एक्टर, भविष्य में जिनके साथ काम करना चाहते हैं ?

अविनाश दास -सामाजिक मसलों में मेरी दिलचस्पी ज़्यादा है, तो मैं अपने दायरे में रहने की ही कोशिश करूंगा। मेरे फेवरिट डायरेक्टर हैं शुजित सरकार और राजकुमार हिरानी। अभिनेताओं में मुझे इरफ़ान, मनोज बाजपेयी, रणदीप हुड्डा और शाहरुख़ ख़ान पसंद हैं। मैं हमेशा नये और अनएक्सप्लोर्ड एक्टर्स के साथ फिल्म बनाना चाहूंगा। फ्रेश टैलेंट मुझे कुछ ज़्यादा ही भाता है। 

स्वरा भास्कर की फिल्म ‘अनारकली ऑफ आरा’ 24 मार्च को होगी रिलीज

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