'भारत कोई पश्चिमी देश नहीं है जहाँ लिव इन रिलेशनशिप सामान्य हों', मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद HC ने की टिप्पणी
'भारत कोई पश्चिमी देश नहीं है जहाँ लिव इन रिलेशनशिप सामान्य हों', मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद HC ने की टिप्पणी
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इलाहाबाद: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि भारत कोई पश्चिमी देश नहीं है जहाँ लिव इन रिलेशनशिप सामान्य बात हों। उच्च न्यायालय ने कहा है भारत में लोगों को अपनी संस्कृति एवं परंपराओं को मानना चाहिए तथा इस पर गर्व करना चाहिए। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी एक याचिका की सुनवाई करते हुई की। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सामने एक व्यक्ति आशीष कुमार ने याचिका डाली थी कि एक महिला, जिससे उसका 2011 से प्रेम सम्बन्ध है, उसका परिवार उसे उससे मिलने नहीं दे रहा है। उसने इस सिलसिले ने याचिकाकर्ता ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका डाली थी। उसका कहना था कि महिला को उसके परिवार वालों ने जबरन कैद कर रखा है।

वही इस मामले की सुनवाई कर रहे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस शमीम अहमद ने कहा, “कोर्ट का मानना है कि हम एक पश्चिमी देश नहीं हैं जहाँ एक लड़की-लड़के का लिव इन रिलेशनशिप में रहना सामान्य बात हो। हम एक ऐसे देश हैं जहाँ लोग अपनी परंपराओं और संस्कृति में विश्वास करते हैं तथा उस पर गर्वित हैं, ऐसे में हमें भी यही करना चाहिए।” आशीष कुमार ने अदालत के समक्ष याचिका के साथ एक पत्र भी रखा था जो कि उसने दावा किया था कि लड़की ने लिखा है। याचिकाकर्ता आशीष कुमार ने अदालत के सामने कुछ तस्वीरें भी रखी थीं तथा बताया था कि वह इस लड़की के 2011 से प्रेम संबंध में हैं। हालाँकि, अदालत ने कहा कि यह याचिका मात्र लड़की और उसके परिवार की छवि खराब करने के उद्देश्य से डाली गई है तथा इससे याचिकाकर्ता उन पर दबाव डाल कर अपने मन का फैसला करवाना चाहता है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा, “कोर्ट के सामने कोई कारण नहीं है कि वह इस तरह की याचिका की सुनवाई करे जो कि किसी लड़की एवं उसके परिवार वालों की छवि खराब करने के उद्देश्य से डाली गई है। कोर्ट यदि ऐसी याचिका को सुनता है तो इससे लड़की एवं उसके परिवार की छवि धूमिल होगी तथा उन्हें भविष्य में उसके लिए दूल्हा ढूँढने में समस्या होगी।” अदालत ने याचिकाकर्ता से पूछा कि अगर वह और लड़की जिसके विषय में याचिका डाली गई है, वह 13 वर्षों से एक दूसरे के साथ प्रेम सम्बन्ध में हैं तो विवाह क्यों नहीं किया। अदालत ने इसी के साथ ही याचिका को खारिज कर दी तथा याचिकाकर्ता पर ₹25,000 का जुर्माना भी लगाया।

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