कैसे हुआ 'हिन्दू आतंकवाद' का जन्म ? लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित ने कोर्ट में बताई पीड़ा, जानकर काँप जाएगी रूह
कैसे हुआ 'हिन्दू आतंकवाद' का जन्म ? लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित ने कोर्ट में बताई पीड़ा, जानकर काँप जाएगी रूह
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नई दिल्ली: 8 मई को, लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित, जिन पर यूपीए सरकार के तहत 2008 के मालेगांव विस्फोट में कथित भूमिका का आरोप लगाया गया था, ने खुलासा किया है कि आतंकवाद विरोधी दस्ते (ATS) के अधिकारियों ने प्रमुख दक्षिणपंथी नेताओं के नाम लेने के लिए उनसे अवैध रूप से पूछताछ की और उन्हें प्रताड़ित किया। ATS के तत्कालीन अधिकारियों ने उन्हें प्रताड़ित करते हुए योगी आदित्यनाथ सहित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और विश्व हिंदू परिषद (VHP) के नेताओं का नाम लेने के दबाव बनाया था। उस समय यूपी के मौजूदा सीएम योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से सांसद थे। 2018 में लिखे गए एक पत्र में कर्नल पुरोहित ने बताया था कि पूछताछ के दौरान उनके कपड़े उतारे गए, उनके प्राइवेट पार्ट पर मारा गया और उनके बाल पकड़ कर खींचा गया, और दबाव बनाया गया कि वे योगी आदित्यनाथ और RSS-VHP के नेताओं का नाम ले लें। 

कर्नल पुरोहित ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 313 के अनुसार, NIA विशेष अदालत के समक्ष प्रस्तुत एक लिखित बयान में ये खुलासा किया है। लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित ने अपनी 23 पन्नों की गवाही में कहा कि आतंकवाद निरोधी दस्ते (ATS) के वरिष्ठ कर्मियों ने उन्हें प्रताड़ित किया और विस्फोट का दोष स्वीकार करने के लिए मजबूर किया। कर्नल पुरोहित ने कोर्ट में बताया कि हालांकि उन्हें 29 अक्टूबर 2008 को हिरासत में लिया गया था, लेकिन आतंकवाद विरोधी दस्ते (ATS) ने आधिकारिक तौर पर उनकी गिरफ्तारी दर्ज नहीं की थी। उन्होंने उल्लेख किया कि भले ही उन्हें औपचारिक रूप से हिरासत में नहीं लिया गया था, लेकिन ATS ने मीडिया में गलत जानकारी लीक कर दी। इस गलत सूचना के कारण रिपोर्ट में उन्हें, साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और अन्य को मामले में आरोपी बताया गया।

कर्नल पुरोहित ने कोर्ट को आगे बताया कि अगस्त 2008 में, मालेगांव विस्फोट से एक महीने पहले, "अचानक, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के अध्यक्ष (शरद पवार) ने अलीबाग में पार्टी कार्यकर्ताओं की एक रैली में एक बयान दिया था कि ''ऐसा नहीं है कि सिर्फ इस्लामिक आतंकवादी ही हैं, बल्कि हिंदू आतंकवादी भी हैं। यह पहली बार है जब 'हिंदू आतंक' शब्द गढ़ा गया। इस भावपूर्ण बयान के तुरंत बाद 29 सितंबर, 2008 को दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई।'' 

 

कर्नल पुरोहित ने कहा कि सत्तारूढ़ सरकार (कांग्रेस) की "राजनीतिक आवश्यकताओं के अनुरूप" इस मुद्दे की "मनगढ़ंत" जांच पूर्व IPS अधिकारी परमबीर सिंह, दिवंगत हेमंत करकरे, जो महाराष्ट्र ATS के प्रमुख थे, के निर्देश पर की गई थी। उन्होंने कहा कि मुंबई में उनकी गिरफ्तारी के तुरंत बाद, उन्हें दिवंगत हेमंत करकरे और तत्कालीन ATS के संयुक्त आयुक्त परमबीर सिंह और अन्य लोगों द्वारा पूछताछ करने के लिए खंडाला के एक दूरदराज के बंगले में शिफ्ट कर दिया गया था।

उन्होंने अदालत को बताया कि, “करकरे और परमबीर सिंह बार-बार मुझे अपने खुफिया नेटवर्क और मेरे स्रोतों और संपत्तियों की सूची देने के लिए मजबूर कर रहे थे, वो सूत्र जिन्होंने SIMI और ISI और डॉ जाकिर नाइक की गतिविधियों की मैपिंग में मेरी सहायता की थी। मैंने अपने स्रोत नेटवर्क का खुलासा करने से इनकार कर दिया, क्योंकि यह खुफिया जानकारी के बुनियादी लोकाचार के खिलाफ है।'' कर्नल पुरोहित ने इस बारे में विस्तार से कोर्ट को बताया कि कैसे उनके वरिष्ठ सेना कमांडर कर्नल पीके श्रीवास्तव, जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं, ने उन्हें ATS को सौंपने से पहले उनकी "पीठ में छुरा घोंप दिया"। पुलिस हिरासत में कर्नल पुरोहित पर हमला करने वाला पहला व्यक्ति उनका सीनियर ही था। उसके बाद परमबीर सिंह ने उन पर हमला किया और छह कांस्टेबलों ने उन्हें (कर्नल को) पकड़ रखा था।

सेना अधिकारी कर्नल पुरोहित ने कोर्ट में आगे कहा कि, “मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया गया, जो किसी जानवर ने भी नहीं किया होगा और मेरे साथ दुश्मन देश के युद्धबंदी से भी बदतर व्यवहार किया गया। करकरे, परम बीर सिंह और कर्नल श्रीवास्तव इस बात पर जोर देते रहे कि मुझे मालेगांव बम विस्फोट की जिम्मेदारी ले लेनी चाहिए और मुझे RSS और VHP के वरिष्ठ दक्षिणपंथी नेताओं, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ का नाम लेना चाहिए। यह यातना 3 नवंबर 2008 तक लगातार जारी रही।”

उन्होंने कहा कि वह चल भी नहीं सकते, क्योंकि प्रताड़ना के कारण उनका घुटना टूट गया है। उन्होंने कोर्ट को बताया कि उनकी "हिरासत में हत्या की भी साजिश चल रही थी" क्योंकि उन्हें बताया गया था कि उन्हें गोली मारने की तैयारी चल रही थी। कर्नल पुरोहित ने कोर्ट को बताया कि अधिकारियों ने RDX सहित विस्फोटक और नकली सबूत लगाए थे और उन पर एक गवाह, संदीप डांगे और वांछित अपराधी रामचन्द्र कलसांगरा की न्यायेतर फांसी में शामिल होने का आरोप लगाया था।

कर्नल पुरोहित ने कहा कि यह स्पष्ट है कि उनके खिलाफ पूरा मामला एक साजिश के तहत था, क्योंकि गवाह शत्रुतापूर्ण होने लगे, जिससे पता चला कि उन्हें ATS या उनके राजनीतिक अधिपतियों द्वारा गलत बयान देने के लिए मजबूर किया गया था और उन्हें धमकी भी दी गई थी, यातना दी गई थी। कभी-कभी बंदूक की नोक पर गिरफ्तार कर लिया जाता था। उन्होंने कहा कि उन्होंने (ATS अधिकारियों ने) भारतीय सेना की प्रतिष्ठा को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचाया है, खुफिया कर्मियों के मनोबल को कमजोर किया है और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाला है।

कर्नल पुरोहित ने कोर्ट को बताया कि उनका फोन गैरकानूनी तरीके से टैप किया गया था और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत उनके और अन्य लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी के पीछे "दुर्भावनापूर्ण इरादे" थे। कर्नल पुरोहित ने कोर्ट को बताया कि एक खुफिया अधिकारी के रूप में, उन्होंने "भगोड़े आतंकी आरोपी और ISI (इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस) एजेंट" दाऊद इब्राहिम और प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के एक प्रमुख सदस्य, घोषित भगोड़े डॉ गणपति के साथ उनकी बैठक की जांच शुरू की थी।  

कर्नल पुरोहित ने कहा कि,  “बैठक पूरे प्रायद्वीपीय भारत में सक्रिय दंडकारण्य विशेष समिति क्षेत्र में वामपंथी चरमपंथियों और नक्सलियों को ISI, पाकिस्तान से हथियारों, गोला-बारूद, युद्ध जैसे भंडार और नशीली दवाओं की आपूर्ति को सुव्यवस्थित करने के लिए थी, विशेषकर तब जब ये आपूर्ति नेपाल से भारत में आनी बंद हो गई थी। उन्होंने कोर्ट को बताया कि 2006-07 की ऐसी दूसरी रिपोर्ट इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन (IRF) के संस्थापक जाकिर नाइक, जो इस समय फरार है और उसकी अवैध फंडिंग पर केंद्रित है। उन्होंने किसी रिपोर्ट पर काम शुरू करने से पहले वामपंथी उग्रवाद और नक्सलवाद के उदय की बारीकी से जांच करने पर जोर दिया। उनके अनुसार, कागजात में कुछ स्थानीय और राष्ट्रीय अधिकारियों के नाम थे। 

5 नवंबर 2008 को औपचारिक रूप से गिरफ्तार दिखाए जाने के बाद कर्नल पुरोहित ने बताया कि ATS ने "उन व्यक्तियों के इर्द-गिर्द जांच की कहानी गढ़ी थी, जिन्हें वे हमेशा गिरफ्तार करना चाहते थे, शायद उनके राजनीतिक आकाओं के निर्देशानुसार, और मामला लक्षित व्यक्तियों के आसपास बनाया गया था" जो अब आरोपी हैं।” पुरोहित के वकील विरल बाबर ने विशेष अदालत को लिखित बयान दिया। विस्फोट में कथित संलिप्तता के आरोपों का सामना कर रहे सभी संदिग्ध विशेष अदालत में अपनी गवाही दर्ज करा रहे हैं। कर्नल पुरोहित और कुछ अन्य आरोपी पक्षों की ओर से अभियोजन पक्ष की गवाही के विरोध में दिए गए बयान अदालत में पूरे हो चुके हैं। बता दें कि, परमबीर सिंह वही हैं, जिनपर आतंकी अजमल कसाब की मदद करने का आरोप लगा है। सेवानिवृत्त सहायक पुलिस आयुक्त (ACP) शमशेर खान पठान ने खुलासा किया था कि मुबंई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने 26/11 आतंकी हमले के दोषी मोहम्मद अजमल कसाब से जब्त किए गए मोबाइल फोन को ''नष्ट'' कर दिया था, जिसमे कई अहम सबूत हो सकते थे। पठान ने जुलाई में मुंबई पुलिस आयुक्त को लिखित शिकायत देकर पूरे मामले की जांच कराने और परमबीर सिंह के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करने की मांग की थी। इस हमले में 250 से अधिक लोग मारे गए थे, इस आतंकी हमले को भी हिन्दू आतंकवाद का रूप देने की कोशिश कांग्रेस द्वारा की गई थी। वहीं, पाकिस्तान ने पहले ही 10 आतंकियों के हाथों में कलावा बांधकर और उनकी जेबों में हिन्दू नाम वाले ID कार्ड रखकर भेजा था। लेकिन अजमल कसाब जिन्दा पकड़ा गया और उसने कबूल कर लिया कि, पाकिस्तान ने उसे जिहाद करने भेजा था। कसाब के कबूलनमे का वीडियो अब भी यूट्यूब पर मौजूद है। ठीक हमले के बाद कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने '26/11 RSS की साजिश' नाम से किताब लॉन्च की थी और हिन्दू आतंकवाद का नैरेटिव गढ़ने की कोशिश की थी। सेना में जाकर देशसेवा करने वाले एक कर्नल को कांग्रेस सरकार ने आतंकवादी सिद्ध करने का पूरा प्रयास किया, ताकि जनता का सेना पर से विश्वास टूट जाए, और हिन्दू आतंकवादी का फर्जी नैरेटिव गढ़ा जा सके.    

क्या है मालेगांव विस्फोट मामला:-

यह मामला 29 सितंबर 2008 की घटनाओं से संबंधित है, रात लगभग 9:30 बजे जब उत्तर महाराष्ट्र के नासिक क्षेत्र में एक कपड़ा शहर, जो सांप्रदायिक भावनाओं के प्रति संवेदनशील है, मालेगांव में हमीदिया मस्जिद के करीब एक मोटरसाइकिल पर छुपाया गया बम विस्फोट हो गया था। विस्फोट में छह लोगों की मौत हो गई और 101 अन्य घायल हो गए। 2011 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के कार्यभार संभालने से पहले महाराष्ट्र पुलिस की ATS इकाई ने सबसे पहले इस घटना की जांच की थी। कर्नल पुरोहित पर हिंदू आदर्शों को बनाए रखने के लिए स्थापित ट्रस्ट अभिनव भारत का हिस्सा होने का आरोप लगाया गया था, लेकिन मुसलमानों के खिलाफ हमलों के लिए उन्हें कवर के रूप में इस्तेमाल करने का भी आरोप लगाया गया था। मामले में साध्‍वी प्रज्ञा ठाकुर को भी गिरफ्तार किया गया था। वर्षों तक हिरासत में बिताने के बाद, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित को आखिरकार अगस्त 2017 में जमानत दे दी गई।

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