इस्लामाबाद : मंत्री नरेंद्र मोदी ने मित्र देशों के साथ संबंधों को और मजबूत किया है। साथ ही पाकिस्तान को एक खास तरह की कूटनीतिक चतुराई के सामने लाकर खड़ा कर दिया है। ताजा जानकारी के अनुसार सैन्य प्रमुख जनरल राहील शरीफ ने रविवार को पूरा दिन अफगानिस्तान में बिताया और अफगान शांति प्रक्रिया को फिर से शुरू करने पर बात की। सुचना के अनुसार जब राहील शरीफ ने वाशिंगटन की यात्रा की थी तो उनसे कहा गया था कि वह मामलों को अपने हाथ में लें, अफगानिस्तान जाएं और बातचीत फिर से शुरू कराएं। हाल की उथल-पुथल, जिसके केंद्र में मोदी हैं, को देखते हुए यह जरूरी हो गया था कि दोनों देशों के बीच के तनाव को कम किया जाए।
अखबार ने लिखा है कि हालांकि इसे देखकर ताज्जुब नहीं हुआ कि अफगानिस्तान के लोकप्रिय विपक्षी नेताओं ने तालिबान के साथ शांति वार्ता में पाकिस्तान को शामिल करने का पुरजोर विरोध किया। इससे अफगानिस्तान में पाई जाने वाली इस भावना को समझा जा सकता है कि पाकिस्तान बगावत को अपने काबू में रखना चाहता है। संपादकीय में कहा गया है कि मध्य पूर्व की सुरक्षा से जुड़ी उधेड़बुन अफगानिस्तान तक पहुंच चुकी है। और, इससे बचने का अब कोई तरीका भी नहीं है। संपादकीय में कहा गया है, हमें इस हालत के लिए भारत और रूस को धन्यवाद देना होगा।
दोनों के बीच हथियारों के 16 समझौते, सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता के लिए भारत को रूस का समर्थन, सीरिया में रूस की भूमिका को भारत का समर्थन, हमें सिर्फ यह सोचकर आश्चर्य होता है कि अमेरिका इस सब पर क्या सोचता होगा? उनके प्रिय मोदी, जो कि ऊपर से नीचे तक रूसी मिसाइलों से लैस हैं! अखबार ने लिखा कि मोदी ने साफ कर दिया है कि वह पाकिस्तान को दक्षिण एशिया और अफगानिस्तान के बीच एक पुल के रूप में देखते हैं। रूस से लेकर अफगानिस्तान तक, कई निर्णायक समझौते कर मोदी ने मित्रों के साथ संबंध पुख्ता किए हैं और पाकिस्तान को कूटनीतिक चातुर्य के मुहाने पर ला खड़ा किया है। अब यह देखना होगा कि पाकिस्तान इस प्रेम त्रिकोण में कौन सी भूमिका निभाना पसंद करेगा।