दया और बहादुरी की अद्भुत मिसाल थे गुरु हर राय
दया और बहादुरी की अद्भुत मिसाल थे गुरु हर राय
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नई दिल्ली: गुरू हर राय, सिखों के 7वें गुरु थे, हिन्दू समाज भी गुरु का बेहद सम्मान करता है। गुरू हरराय जी एक महान आध्यात्मिक व राष्ट्रवादी महापुरुष एवं एक योद्धा भी थे। उनका जन्म सन् 1630 में कीरतपुर रोपड़ में हुआ था। 6वें गुरू हरगोविन्द साहिब जी ने अपने देहत्याग से पहले, अपने पोते हरराय जी को 14 वर्ष की छोटी आयु में 3 मार्च 1644 को 'सप्तम्‌ नानक' के रूप में घोषित किया था। गुरू हरराय साहिब जी, बाबा गुरदित्ता जी एवं माता निहाल कौर जी की संतान थे। गुरू हरराय साहिब जी का विवाह माता किशन कौर जी के साथ हुआ था, जो कि अनूप शहर (बुलन्दशहर), उत्तर प्रदेश के श्री दया राम जी की पुत्री थी। गुरू हरराय साहिब जी के दो पुत्र थे श्री रामराय वडवाल और श्री हरकिशन साहिब जी (गुरू) थे।

गुरू हरराय साहिब जी का शांत व्यक्तित्व लोगों को काफी प्रभावित करता था। गुरु हरराय साहिब जी ने अपने दादा और गुरू हरगोविन्द साहिब जी के सिख योद्धाओं के दल को पुनर्गठित किया। उन्होंने सिख योद्धाओं में नवीन प्राण संचारित किए। वे एक आध्यात्मिक पुरुष होने के साथ ही एक बेहतरीन राजनीतिज्ञ भी थे। उनके राष्ट्र केन्द्रित विचारों की वजह से मुगल औरंगजेब को काफी जलन होती थी। औरंगजेब का आरोप था कि गुरू हरराय साहिब जी ने दारा शिकोह (औरंगज़ेब के बड़े भाई) की मदद की है। दरअसल, दारा शिकोह संस्कृत भाषा के विद्वान थे और भारतीय जीवन दर्शन उन्हें प्रभावित कर रहा था। एक बार गुरू हरराय साहिब जी मालवा और दोआबा क्षेत्र से प्रवास करके वापस आ रहे थे, तो मोहम्मद यारबेग खान ने उनके काफिले पर अपने एक हजार सशस्त्र सैनिकों के साथ हमला कर दिया। इस अचानक हुए आक्रमण का गुरू हरराय साहिब जी ने सिख योद्धाओं के साथ मिलकर पूरी बहादुरी के साथ करारा जवाब दिया। दुश्मन को जान व माल की काफी हानि हुई और मुगल सेना युद्ध के मैदान से भाग खड़ी हुई। गुरु हर राय आत्म सुरक्षा के लिए सशस्त्र होने के पक्षधर थे, भले ही व्यक्तिगत जीवन में वे अहिंसा परमो धर्म के सिद्धान्त को अहम मानते हों। गुरू हरराय साहिब जी प्रायः सिख योद्धाओं को बहादुरी के पुरस्कारों से सम्मानित किया करते थे।

गुरू हरराय साहिब जी ने कीरतपुर में एक आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी दवाईयों का अस्पताल एवं अनसुधान केन्द्र भी स्थापित किया था। एक बार दारा शिकोह किसी अनजानी बीमारी की चपेट में आ गया । हर प्रकार के सबसे बेहतर हकीमों से सलाह ली गयी। लेकिन, उसकी सेहत में  कोई भी सुधार न आया। अन्त में गुरू साहिब की कृपा से उसका उपचार हुआ। इस प्रकार दारा शिकोह को मौत के मुंह से बचा लिया गया।

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