कोरोना काल के कारण पुरे देश में हाहाकार मचा हुआ है | ऐसे में देश का हर काम ठप्प हो चूका था |लॉक डाउन खुलने के बाद अब राष्ट्रीय सहकारी विकास परियोजना के जरिये अब ऊधमसिंह नगर, हरिद्वार आदि क्षेत्रों में पराली और अन्य फसलों के अवशेष को खरीदा जा सकता है। वहीं यह खरीद परियोजना के जरिये चारा बनाने के काम आ सकती है इसके अलावा इन दो जिलों में फसल के बचे हुए भाग को जलाने पर अंकुश लगाया जाएगा। यह राष्ट्रीय सहकारी विकास परियोजना के जरिये इस वक़्त मक्के का इस्तेमाल कर पशु चारा बनाया जा सकता है। हरे चारे में मिलाने के लिए धान, गेहूं इत्यादि फसलों से निकले हुए हिस्से की खरीद सीधा किसानों से की जा सकती है। बता दें की योजना के जरिये इस खरीद से सीधा दो फायदे हो सकते है । फसलों की पैदावार के बाद बचा हुआ हिस्सा पशुओ के चारे के काम आ जायेगा | इस परियोजना के कारण पर्यावरण को भी बचाया जा सकता है | हर वर्ष फसल का बचा हुआ हिस्सा जलने से होने वाले प्रदूषण से भी बचा जा सकता है ।
इसके साथ ही 10 हजार मीट्रिक टन की प्रथम चरण में अक्तूबर-नवंबर माह में खरीदा जा सकता है। खरीद के लिए कीमत निर्धारित होना अभी बाकी हैं और अधिकारियों का मानना है कि यह खरीद उसी दर पर होनी चाहिए जिससे किसानों को सीधा फायदा हो। साइलेज उत्पादन और मांग बढ़ने के साथ खरीद की मात्रा बढ़ाई जा सकती है । हर साल 50 हजार मीट्रिक टन धान जला दिया जाता है | बता दें की सिर्फ ऊधमसिंह नगर में ही तीन लाख मीट्रिक टन से ज्यादा पैदावार धान की होती है। बताया जा रहा है कि इसका एक हिस्सा खेतों को अगली आने वाली फसल के लिए तैयार करने में जला दिया जाता है।वहीं डेयरी निदेशक जयदीप अरोड़ा ने जानकारी दी है की यह स्थानीय स्तर पर किए गए इस्तेमाल से सामने आया है। साथ ही 20 हजार मीट्रिक टन पशु चारे का उत्पादन किया जायेगा |
असल में अभी ढाई हजार मीट्रिक टन का उत्पादन ही मुश्किल से हो पा रहा है । इसके अलावा चारे की प्रदेश में डिमांड लगभग 12 हजार मीट्रिक टन बताई गयी है। और पराली और अन्य डंठलों का प्रयोग तक़रीबन 15 प्रतिशत तक टीएमआर या पशु चारे में किया जा सकता है । जानकारी के लिए बता दें की पंजाब, हरियाणा की तरह ही उत्तराखंड में भी साल के आखिरी के महीनें में धान के फसल के बचे हुए हिस्सों को जलाया जाता है। वहीं खेत को 10 से 15 दिन के अंदर दूसरी फसल के लिए तैयार किया जाता है । इस पराली और अन्य फसलों के ठूंठ को जलाने पर एनजीटी ने भी बैन लगाया है। इसके बाद भी लोग नहीं मानते है और यह कार्य करते रहते है | बता दें की अक्तूबर और नवंबर के समय में दिल्ली और पास का क्षेत्र काफी ज्यादा प्रदूषण वाला रहता है ।
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