भीषण शरणार्थी संकट से गुजर रहा यूरोप
भीषण शरणार्थी संकट से गुजर रहा यूरोप
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बीजिंग : मौजूदा वर्ष यूरोप के इतिहास में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे भीषण शरणार्थी संकट के लिए याद किया जाएगा। आंतरिक संघर्ष झेल रहे अफगानिस्तान, इराक और सीरिया से बड़े पैमाने पर शरणार्थियों ने यूरोप में वैध और अवैध तरीकों से प्रवेश किया। शरणार्थी संकट से बचने के लिए विभिन्न यूरोपीय देशों ने अनेक तरीके अपनाए, जैसे अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर बाड़ लगाना। विशेषज्ञों ने हालांकि इस समस्या के लिए अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों द्वारा अन्य देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप को जिम्मेदार बताया है और उनका मानना है कि सिर्फ इस मूलभूत कारक को खत्म करके ही इस समस्या को और फैलने और भविष्य में इसी तरह के संकट को पनपने से रोका जा सकता है।

शरणार्थी संकट से जुड़े तथ्य एवं आंकड़े :

आंतरिक संघर्ष झेल रहे जिन देशों से बड़ी संख्या में शरणार्थियों ने जान की परवाह किए बगैर शरण लेने के लिए यूरोपीय देशों की ओर गए, उनमें अफगानिस्तान, इराक, सीरिया और लीबिया प्रमुख हैं। गौरतलब है कि इन चारों ही देश में पश्चिमी सेनाएं मौजूद हैं। जानकारी के अनुसार एक जनवरी, 2015 से नौ दिसंबर, 2015 के बीच सिर्फ समुद्र के रास्ते 924,147 शरणार्थी यूरोप में शरण लेने पहुंचे और इस बीच 3,671 शरणार्थियों की भूमध्य सागर में डूबने से मौत हो गई। शरणार्थियों के साइप्रस, ग्रीस, इटली, स्पेन, जर्मनी प्रमुख शरण स्थल रहे। अकेले ग्रीस ने 771,508 शरणार्थियों को शरण दी, जो 2014 के मुकाबले 21 गुना अधिक रहा। इनमें से सर्वाधिक शरणार्थी सीरिया (388,130) के रहे, जबकि अफगानिस्तान से 142,301 और इराक से 44,349 शरणार्थियों ने ग्रीस में शरण ली।

इसी अवधि में जर्मनी ने करीब 965,000 शरणार्थियों को शरण दी, जिसमें आधे से अधिक सीरिया से थे। यह शरणार्थी संकट खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा, बल्कि यूरोप पहुंचने वाले शरणार्थियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग (यूएनएचसीआर) कार्यालय ने सितंबर में कहा था कि अगले दो वर्ष में भूमध्य सागर से होते हुए 850,000 शरणार्थियों के यूरोप पहुंचने की उम्मीद है, जिसमें 2015 में यह संख्या जहां चार लाख के करीब होगी वहीं 2016 में यह संख्या बढ़कर 4.5 लाख हो जाने की उम्मीद है।

शरणार्थी समस्या झेल रहे देशों पर पड़ने वाले प्रभाव :

शरणार्थियों के आने से सिर्फ उन्हें शरण देने वाले देश ही प्रभावित नहीं हुए हैं, बल्कि मार्ग में पड़ने वाले देश जैसे तुर्की और लेबनॉन पर भी दबाव बढ़ा है। यूरोपीय आम जनमत के अनुसार शरणार्थी संकट ने यूरोपीय संघ (ईयू) की एकता को खतरे में डाल दिया है, क्योंकि यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बीच शरणार्थियों के पुनर्वास जैसे मुद्दों पर मतभेद की स्थिति बन गई है। विश्लेषकों ने आशंका जताई है कि यदि यूरोप में शरणार्थियों को शरण देने की प्रक्रिया, शरणार्थियों का बंटवारा और सामूहिक शरणार्थी शिविरों की स्थापना जैसे मुद्दों पर सर्वसम्मति नहीं बनती तो यूरोपीय संघ फिर से उसी दशकों पुराने युग में चला जाएगा, जब विभिन्न देशों के बीच अनेक बाधाएं हुआ करती थीं, जैसे दो देशों के बीच बाड़ लगाया जाना या दीवारें खड़ी कर देना।

जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने चेतावनी देते हुए कहा था कि यदि शरणार्थी समस्या का समाधान उचित तरीके से नहीं खोजा जाएगा तो शेंगेन क्षेत्र पर संकट खड़ा हो जाएगा। गौरतलब है कि शेंगेन समझौते के बाद इस इलाके में वीजा जैसी बाधाओं को खत्म कर दिया गया था।

नवंबर के शुरुआत में 160,000 शरणार्थियों को सदस्य देशों के बीच वितरित किए जाने के विवादित मुद्दे पर हुई यूरोपीय संघ की बैठक से ठीक पहले लक्जमबर्ग के विदेश मंत्री ज्यां एसेलबोर्न ने यूरोप में बेहद जटिल स्थिति बनने के प्रति चेतावनी दी थी और कहा था कि शरणार्थी संकट पर यूरोप फिर से बंट सकता है। कुछ विशेषज्ञों ने हालांकि साकारात्मक विश्लेषण भी पेश किया और कहा कि यदि उचित तरीके से इस समस्या का समाधान निकाला जाए तो भविष्य में यह यूरोप के लिए नए अवसर पैदा कर सकता है। जर्मन के अंतर्राष्ट्रीय एवं सुरक्षा मामलों के संस्थान में कार्यरत विशेषज्ञ काई ओलाफ लैंग के अनुसार, शरणार्थी संकट समस्या और अवसर दोनों है।

उन्होंने कहा, यह एक समस्या है, क्योंकि शरणार्थियों की विशाल संख्या को बहुत ही कम समय में संभालना है और उनके लिए दीर्घकालिक व्यवस्थाएं करनी हैं, जैसे उन्हें अपने देश के मौजूद सामाजिक, आर्थिक और सामुदायिक प्रणाली में समाहित करना, जिसके लिए जन स्वीकार्यता, एकीकृत होने की शरणार्थी समूह की इच्छा और राजनीतिक नेतृत्व की जरूरत होगी। उन्होंने आगे कहा, इसके पूरे अवसर हैं कि शरणार्थी समस्या के कारण यूरोप के घरेलू, विदेश और सुरक्षा मामलों से जुड़ी नीतियों में समानता बढ़े।

शरण देने वाले देशों के अलावा शरणार्थियों के मार्ग में पड़ने वाले देशों को भी काफी समस्याएं झेलनी पड़ रही हैं। जैसे तुर्की को सुरक्षा से लेकर आर्थिक संकट से जूझना पड़ रहा है। इसके अलावा स्थानीय निवासियों ने इसके कारण अपराध में बढ़ोतरी, आम उपयोग के वस्तुओं की कीमत में उछाल और सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करने वाली संस्थानों पर अतिरिक्त बोझ जैसी समस्याओं की शिकायतें की हैं। लेबनान के विदेश मंत्री गेब्रान बासिल ने अक्टूबर में ही चेताया था कि सीरिया से आ रहे अत्यधिक संख्या में शरणार्थियों के कारण 'अस्तित्व के संकट' की समस्या खड़ी हो सकती है, जबकि लेबनान पहले से ही आंतरिक राजनीतिक संकट से जूझ रहा है।

लेबनान में शरणार्थी शिविरों में भी सुरक्षा की स्थिति बिगड़ी है। अक्टूबर में लेबनान की पूर्वी सीमा से लगे अर्साल इलाके में एक शरणार्थी शिविर में हुए बम विस्फोट में चार सीरियाई शरणार्थियों की मौत हो गई, जबकि 10 अन्य घायल हो गए थे। शरणार्थियों के साथ यूरोप में चरमपंथी समूह के संदिग्धों के घुसने की भी आशंका व्यक्त की गई और नवंबर में पेरिस में हुए घातक आतंकवादी हमले को इसी कड़ी में देखा गया, जिसमें करीब 130 लोगों की मौत हो गई थी।

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