गुलबर्ग सोसायटी केसः एहसान जाफरी ने भड़काई थी हिंसा
गुलबर्ग सोसायटी केसः एहसान जाफरी ने भड़काई थी हिंसा
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नई दिल्ली। गुजरात में साल 2002 में हुए बहुचर्चित गुलबर्ग केस में एक नया तथ्य सामने आया है। इस मामले में दोषियों को सुनाई गई सजा पर कोर्ट के फैसले की कॉपी आ गई है। इस कॉपी में कई ऐसी बातें है, जो एक नई बहस को जन्म दे सकता है।

इस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित स्पेशल जांच टीम ने की थी। कोर्ट की कॉपी में बताया गया है कि हिंसा के दौरान मारे गए पूर्व कांग्रेसी विधायक एहसान जाफरी ने ही पहले फायरिंग की थी। इस हिंसा में 69 लोगों की जानें गई थी। जाफरी ने सोसायटी के भीतर से ही भीड़ पर फायरिंग शुरु कर दी।

जिससे एक व्यक्ति की मौत हो गई और बाद में हिंसा भड़क गई। उस वकर्त वहां मौजूद पुलिस के पास पर्याप्त मात्रा में फोर्स उपलब्ध नहीं थे, जिससे कि वो हिंसा को रोक सके। हालांकि, कोर्ट ने हिंसा के दिन को सिविल सोसायटी के इतिहास में काला दिन करार देते हुए कहा कि किसी भी कीमत पर हत्या को सही नहीं ठहराया जा सकता।

एसआईटी अदालत ने शुक्रवार को 11 दोषियों को उम्रकैद व 12 को 7 साल की सजा सुनाई और एक को 10 साल की कैद का फरमान सुनाया। 2 जून को सीबीआई के विशेष न्यायधीश पी बी देसाई ने गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार मामले में 66 आरोपियों में से 24 को दोषी ठहराया था।

2002 में हुए इस नरसंहार में कांग्रेस के नेता एहसान जाफरी समेत 69 लोगों की हत्या कर दी गई थी। मुकदमे के दौरान 66 में से 6 की मौत हो गई। 11 पर हत्या का आरोप लगा जब कि विश्व हिंदू परिषद् के नेता अतुल वैद्द सहित कुल 13 लोगों को हल्के अपराध का दोषी पाया गया।

मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा था कि आपराधिक साजिश का कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है और आईपीसी की धारा 120बी के तहत सारे आरोप हटा लिए गए है। जिन लोगों को बरी किया गया हैं, उसमें बीजेपी के वर्तमान पाषर्द बिपिन पटेल, गुलबर्ग सोसाइटी जहां है, उस इलाके के तत्कालीन पुलिस निरीक्षक के जी एर्डा और कांग्रेस के पूर्व पाषर्द मेघसिंह चौधरी शामिल हैं।

पूरे देश को झकझोर कर रख देने वाले इस नरसंहार ने अहमदाबाद के केंद्र में स्थित सोसायटी पर हमला बोल दिया था और जाफरी समेत कई लोगों की हत्या कर दी। यह घटना साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के एस-6 डिब्बे में गोधरा स्टेशन के निकट आग लगाए जाने के एक दिन बाद हुई थी।

यह 2002 के गुजरात दंगों के उन नौ मामलों में से एक है जिसकी सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी ने जांच की थी।

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