भले ही नहीं पता कैसे बनेगा वेंटिलेटर, लेकिन इंसानियत को बचाने के लिए किया ऐसा काम
भले ही नहीं पता कैसे बनेगा वेंटिलेटर, लेकिन इंसानियत को बचाने के लिए किया ऐसा काम
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कई बार हमने इस बात को सुना है कि  'आवश्‍यकता ही अविष्‍कार की जननी होती है'. कोरोना के चलते ये बात साबित भी हो गई है. ऐसा हम मरीजों की जान बचाने में काम आने वाले वेंटिलेटर के लिए कह रहे हैं. पूरी दुनिया को अपनी पकड़ में जकड़ने वाले कोरोना वायरस की वजह से जब सब जगह वेंटिलेटर की कमी महसूस की जाने लगी तो इसमें वो कंपनियां, संस्‍था और कुछ स्‍वयंसेवी भी सामने आए जो इसको बनाने में जुटे हुए हैं. 

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खास बात ये भी है कि इनमें से कुछ को इसकी तकनीक के बारे में काफी कुछ नहीं पता है. इसके बाद भी वो इस काम में पूरी शिद्दत के साथ जुटे और कुछ ने इसके लिए तकनीकी मदद लेकर इसको कम लागत और कुछ दिनों में तैयार भी कर दिखाया. आज हम आपको ऐसे ही कुछ सस्‍ते वेंटिलेटरर्स के बारे में बता रहे हैं जो अब मरीजों की जान बचाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं.

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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि वेंटिलेटर का इस्‍तेमाल उन मरीजों पर किया जाता है जिन्‍हें सांस लेने में परेशानी होती है. वेंटिलेटर में लगे पंप की मदद से ऑक्‍सीजन मरीज के फेंफड़ों में पहुंचाई जाती है जिसकी वजह से उसका दिल काम करता है और शरीर में खून की सप्‍लाई हो पाती है. ऐसा न होने मरीज की मौत हो जाती है. जहां तक वेंटिलेटर के शुरुआत या इतिहास की बात है तो ये भी काफी पुराना है. औपचारिक तौर पर इसका इस्‍तेमाल 18वीं शताब्दी में शुरू हुआ था. इसे पॉजिटिव-प्रेशर वेंटिलेटर का नाम दिया गया. 1830 में एक स्कॉटिश डॉक्टर ने निगेटिव-प्रेशर वेंटिलेटर बनाया. 19वीं सदी में प्रसिद्ध आविष्कारक एलेक्जेंडर ग्राह्म बेल का वैक्यूम जैकेट काफी लोकप्रिय हुआ था. 

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