माओवादी ने रचाई शादी, हुआ विवाद
माओवादी ने रचाई शादी, हुआ विवाद
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छत्तीसगढ़ : भारत का यह राज्य भी माओवादी से पिछड़ा नहीं है आये दिन किसी ना किसी काम को माओवादी अंजाम देते ही रहते हैं। खून-खराबा इनके द्वारा चलता ही रहता है। ये राज्य नक्सलियों से भरा हुआ है आये दिन कोई न कोई विरोधी संदेश प्रशासन को मिलता ही रहता है। ऐसे में पूर्व माओवादी जिन्होने पुलिस की शर्तो को मानते हुए आत्मसमर्पण कर दिया था। अब शनिवार के दिन इनकी शादी को लेकर विवाद खड़ा हो गया। हम बात कर रहें है छत्तीसगढ़ राज्य की जहां पिछले शनिवार को बस्तर जिले के पुलिस और सामाजिक एकता मंच के नाम का एक संगठन ने जगदलपुर में दो पूर्व माओवादी का विवाह करवाया। ये विवाह पोडियामी लक्ष्मण और कोसी का हुआ।

जानकारी के अनुसार इंद्रावती एरिया कमेटी की जनमिलिशिया प्लाटून नं 3 के डिप्टी कमांडर रहे पोडियामी लक्ष्मण ने अक्टूबर 2014 में आत्मसमर्पण किया था, जबकि दुल्हन बनी कोसी मरकाम ने पिछले महीने ही पुलिस के सामने हथियार डालें। और फिर समझौता के तौर पर इनकी शादी करवाई गयी। इस विवाह में करीब 10,000 से ज्यादा लोग शामिल थे। जिसमें बस्तर समेत आसपास के जिलों के आधा दर्जन आईपीएस और बस्तर के आईजी पुलिस एसआरपी कल्लुरी पगड़ी बांधे बाराती बने थे। साथ मिली खुशियां, बना कारण विवाद का शादी के अगले दूसरे दिन ही नव दपंत्ति को आरक्षक पद की नौकरी भी दी गई। नौकरी क्या मिली मानों खुशियों की सौगात ही मिल गई। लेकिन छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी ने इन सब का विरोध करते हुए कहा कि जिन माओवादी की शादी हुई है उसमें से लक्ष्मण पर 25 मई 2013 को हुए जीरम घाटी के हमले में शामिल होने का आरोप है।

इस भीषण काण्ड में केंद्रीय मंत्री विध्याचरण शुक्ल, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार पटेल और आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा समेत 32 लोग मारे गए थे। इन्ही सब बातों को सामने लाते हुए कांग्रेस पार्टी का कहना है कि जिन माओवादी ने इतना बड़ा काण्ड किया उनके खिलाफ मुकदमा चलना चाहिए था, उन्हे जेल में डालना चाहिए था। लेकिन पुलिस ने उनके लिए करोड़ो रुपए खर्च कर शादी-ब्याह का आयोजन कर रही हैै। माओवादी के इस कुकृत्य को सामने लाते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विधानसभा में नेता प्रतीपक्ष टीएस सिंहदेव कहते कि इस हमले में किसी भी प्रकार से कोई दया भाव सामने आना ही नहीं चाहिए। ये लोग किसी भी प्रकार से रियायत के पात्र नहीं हो सकते इन लोगों ने क्रूरता और बर्बरता की सीमा को पार कर दिया। ऐसे हमलावरों को तो किसी भी प्रकार से क्षमा यचना नहीं दी जानी चाहिए।

ऐसे अपराधी को उसकी स्वीकरोक्ति के बाद भी दंड देना चाहिए लेकिन यह सब करने के बजाय इन्हें इनाम दिया जा रहा है। शादी की करवाई की जा रही है। पूरा अमला इस खुशी को मना रहा है मानो इन लोगो ने कोई किला फतह कर लिया हो। कोई सरकार इतनी गैर जिम्मेदार कैसे हो सकती है? इन सब विषय को लेकर व पूरे विवाह के सूत्रधार आईजी पुलिस एसआरपी कल्लूरी का कहना है कि इस तरह के आयोजन से माओवादियों के बीच यह संदेश जाता है कि वे अगर मुख्यधारा में लौटेंगे तो पुलिस-प्रशासन और पूरा समाज इनका साथ देगा।

माओवाद को खत्म करने के लिये जरूरी नहीं की मुठभेड़ ही हो इससे माओवाद कभी भी जड़ से खत्म नहीं होगा। बल्कि इन हरकतों से हिंसा और भड़केगी। हमारी तो कोशिश है कि माओवाद जड़ से ही खत्म हो जाये। इसलिये हमारा माओवादी के लिये कहना यही है कि आप मुख्यधारा में जुडि़ये, हम तहेदिल से आपका स्वागत करेंगे,आपको सर आंखों पर रखेंगे। माक्र्सवादी नेता नंद कश्यप का इन सब कारकों पर कहना यह है कि पुलिस कि इन सभी कार्यवाही पर कई सवाल खड़े होते हैं। माओवाद की समस्या कोई गुुुड्डे गुडि़यों का खेल नहीं है बल्कि ये तो एक संकट है जिसे पुलिस इसे अब सस्ती लोकप्रियता के सहारे हल करने की कोशिश करती नजर आ रही है।

इन सब हरकतों से यह नजर आता है कि पुलिस कितनी लापरवाह है क्योंकि जब बस्तर के आईजी, एसपी और दूसरे अधिकारी बारात में पगड़ी पहनकर नाच रहे थे। और इस समारोह कि खूब प्रशंसा कर रहे थे। तब उसी समय बीजापुर में सुरक्षाबल के जवानों द्वारा कथित रुप से 9 आदिवासी औरतों का सामूहिक बर्बता से बलात्कार किया। वे महिलायें उन जवानों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के लिये पुलिस स्टेशनों में भटक रहीं थीं। लेकिन पुलिसवाले तो अपनी पूरी जिम्मेदारी भूलकर शादी का जश्न मना रहे थे।और अगर ऐसा ही चलता रहा तो आदिवासीयों का तो पुलिस पर से विश्वास ही उठ जायेगा।

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