दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में लिंगदोह सिफारिशों का पलीता लगाते हैं निवेदक
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में लिंगदोह सिफारिशों का पलीता लगाते हैं निवेदक
Share:

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) चुनाव में लिंगदोह समिति की सिफारिशों को सबसे अधिक पलीता उम्मीदवारों के समर्थक या कहें ‘निवेदक’ लगाते हैं। ये निवेदक ही इन सिफारिशों को लागू करने में डीयू प्रशासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती पेश करते हैं। कुछ साल पहले तक डूसू चुनाव समिति में शामिल रहने वाले एक प्रोफेसर के मुताबिक अधिकतर मामलों में उम्मीदवार अपने निवेदकों के चक्कर में बच जाते हैं। प्रोफेसर ने तीन मुद्दों के जरिये इसे समझाया।

पांच हजार रुपये से अधिक खर्च नहीं होना: प्रोफेसर ने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय के 51 कॉलेजों में डूसू चुनाव के लिए मतदान होता है। ऐसे में अगर कोई उम्मीदवार कहे कि उसने पूरी ईमानदारी से लिंगदोह समिति की सिफारिशों को माना है तो यह झूठ के अलावा कुछ भी नहीं हो सकता है। प्रशासन उम्मीदवारों के खर्च का बाद में ऑडिट करता है, लेकिन अधिकतर मामलों में उम्मीदवार अपने पास से खर्च ही नहीं करता है जिसकी वजह से वह बच जाता है। प्रत्याशी की पार्टी, गाड़ियों, पोस्टर आदि सभी का खर्च उनके समर्थक करते हैं। ऐसे में प्रशासन के सामने उम्मीदवार के पूरे खर्च का आकलन करने की बड़ी चुनौती होती है।

हाथ से बने पोस्टर लगाना: लिंगदोह समिति की सिफारिशों में साफ लिखा है कि उम्मीदवार हाथ से बने पोस्टर और पंपलेट ही लगा सकते हैं। यहां पर भी प्रत्याशी डीयू प्रशासन को चकमा दे जाते हैं। पहले तो उम्मीदवार ऐसे पोस्टर या पंपलेट बनवाते हैं जो देखने में हाथ से बने लगते हैं। दूसरा इन पोस्टर के नीचे लगाने वाले ‘निवेदक’ का नाम होता है। यानी प्रत्याशी के पोस्टर तो लगे लेकिन डीयू प्रशासन उससे कुछ नहीं कह सकता है क्योंकि वे पोस्टर उसने लगवाए ही नहीं है। इसके अलावा ये पोस्टर पूरी दिल्ली और यहां तक की एनसीआर शहरों में भी लगाए जाते हैं। डीयू प्रशासन के पास इतने लोग ही नहीं हैं जो इन पोस्टर की जांच कर पाएं।

दस दिन के अंदर हो चुनाव संपन्न: डीयू प्रशासन तो चुनाव का कार्यक्रम दस दिन से कम का ही बनाता है, लेकिन छात्र संगठन एक महीने पहले से ही सक्रिय हो जाते हैं। इस दौरान वे लगातार गाड़ियों के काफिले में घूमते हैं, पोस्टर लगाते हैं और पंपलेट से सड़कों का पाट देते हैं। छात्र संगठन 15 से 20 दिन पहले ही अपने संभावित उम्मीदवारों को मैदान में उतार देते हैं जो कॉलेजों में जाकर प्रचार करते हैं। डीयू प्रशासन इस पर भी रोक नहीं लगा पाता है। क्योंकि जो संभावित उम्मीदवार प्रचार कर रहे हैं उनमें से कौन सही में प्रत्याशी बनेगा इसका पता बाद में चलता है।

लिंगदोह कमेटी की कुछ सिफारिशें व्यवहारिक नहीं

एबीवीपी के राष्ट्रीय मीडिया संयोजक साकेत बहुगुणा का कहना है कि लिंगदोह कमेटी की कुछ सिफारिशें व्यवहारिक नहीं हैं, उन्हें व्यवहारिक बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि डीयू के 51 कॉलेज में जाने के लिए 5,000 रुपये ऊंच के मुंह में जीरा है। इसलिए सिफारिशों में विश्वविद्यालय के मुताबिक भी बदलाव जरूरी हैं।

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -