टीपू सुल्तान की मूर्ति पर क्यों मचा है घमासान ? जानें कांग्रेस-भाजपा की अलग-अलग थ्योरी
टीपू सुल्तान की मूर्ति पर क्यों मचा है घमासान ? जानें कांग्रेस-भाजपा की अलग-अलग थ्योरी
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बैंगलोर: कर्नाटक में कांग्रेस द्वारा टीपू सुल्तान की 100 फीट की प्रतिमा स्थापित करने का मामला सियासी बवाल में बदलता जा रहा है। राज्य के पूर्व सीएम व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सिद्धारमैया ने भी इसके समर्थन में बयान दिया है। कांग्रेस MLA तनवीर सैत ने टीपू सुल्तान की 100 फीट की प्रतिमा स्थापित करने की बात कही थी। जब इस संबंध में सवाल पुछा गया तो सिद्धारमैया ने कहा कि, 'टीपू सुल्तान की प्रतिमा क्यों नहीं लगाई जा सकती? उन्हें बनाने दीजिए, क्या वह इसके योग्य नहीं हैं?'

सिद्धारमैया ने भाजपा पर इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करने का इल्जाम लगाया। पूर्व सीएम ने कहा कि भाजपा ने नारायण गुरु, आंबेडकर और अन्य के संबंध में क्या कहा? वे झूठी बातें कहते हैं। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस की तरफ से टीपू सुल्तान की प्रतिमा स्थापित करने की योजना को लेकर उस वक़्त बयान दिया गया, जब विगत शुक्रवार को पीएम नरेंद्र मोदी ने राजधानी बेंगलुरु में नादप्रभु केंपेगौड़ा की 108 फीट की मूर्ति का अनावरण किया था।

कांग्रेस नेता तनवीर सैत ने कहा कि टीपू सुल्तान की मूर्ति स्थापित करने को लेकर जल्द ही समुदाय (मुस्लिम समुदाय) के नेताओं से चर्चा की जाएगी, जिसके बाद कोई फैसला लिया जाएगा। तनवीर ने कहा कि वे अकेले नहीं हैं, जो ऐसा चाहते हैं। उन्होंने कहा कि मूर्ति स्थापित करने का उद्देश्य युवाओं को टीपू सुल्तान के शासन की वास्तविकता और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के संबंध में बताना है। 

बता दें कि, कर्नाटक में अगले साल विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। इससे पहले ही टीपू सुल्तान को लेकर राज्य की सियासत गरमा गई है। असदुद्दीन ओवैसी द्वारा कर्नाटक के हुबली में ईदगाह मैदान में टीपू जयंती मनाए जाने के बाद भाजपा ने जमकर निशाना साधा था। भाजपा ने  कहा था कि टीपू सुल्तान कोई स्वतंत्रता सेनानी नहीं थे कि उनकी जयंती मनाई जाए। ओवैसी से कुछ भी उम्मीद नहीं की जा सकती है, जिनके सियासी पूर्वज ही रजाकार थे, वही रजाकार जिन्होंने हैदराबाद में हिन्दुओं का कत्लेआम किया था।

कौन था टीपू सुल्तान ?

बता दें कि भारत में हमेशा टीपू सुलतान की जयंती मनाने को लेकर विवाद होता रहता है, जहाँ कांग्रेस और वामपंथी दल, टीपू को स्वतंत्रता सेनानी बताते हुए उनकी जयंती मनाने के पक्ष में रहते हैं, वहीं भाजपा-शिवसेना उन्हें सिर्फ अपने मजहब के लिए लड़ने वाला और हिन्दुओं पर अत्याचार करने वाला क्रूर शासक बताती है। इतिहास में भी भाजपा-शिवसेना की थ्योरी को सच साबित करने वाले तथ्य मिलते हैं। जैसे इन शब्दों को ही देख लीजिए:-

'आप लोगों को कुर्गों पर आक्रमण करना है। फिर औरतों, बच्चों सबके सामने तलवार रख सबको मुसलमान बनाना है। इसके लिए चाहे उनको बंदी बनाना पड़े या हत्या करनी पड़े, दस साल पहले इस जिले के 10-15 हज़ार लोगों को पेड़ पर टांग दिया गया था। तब से ये पेड़ अभी भी इंतजार कर रहे हैं।' - ये अंश उस चिट्ठी के हैं, जो टीपू सुल्तान ने अपने कमांडर को लिखी थी। इसका जिक्र खुद टीपू सुल्तान के दरबारी इतिहासकार मीर हुसैन किरमानी ने अपनी पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ़ टीपू सुल्तान' में किया है।  हालाँकि, ये बात सत्य है कि अंग्रेजों से लड़ने में टीपू ने काफी बहादुरी दिखाई थी। लेकिन इसके साथ ही वो मराठा, निज़ाम, ट्रावनकोर के राजा, कुर्ग सबको दबाना चाहता था। इसके लिए उसने क्रूरता करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। उसके पिता हैदर अली ने वाड्यार वंश से सत्ता हथिया ली थी। हैदर की मौत के बाद 1782 में टीपू मैसूर का राजा बना था। शासक बनने के बाद ही टीपू की क्रूरता शुरू हो गई थी, 1788 में टीपू सुल्तान ने एक बड़ी सेना केरल में हमला करने के लिए भेज दी। मशहूर कालीकट शहर को ध्वस्त कर दिया गया। सैकड़ों मंदिरों और चर्चों को चुन-चुन के ढहाया गया। हजारों हिन्दुओं और क्रिश्चियनों को तलवार के बल पर मुसलमान बना दिया गया। जो लोग नहीं माने, उनकी हत्या कर दी गई। 

वहीं, कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए टीपू सुल्तान के स्वतंत्रता सेनानी होने पर सवाल उठाए थे। कोर्ट का कहना था कि टीपू सुल्तान स्वतंत्रता सेनानी नहीं था, बल्कि एक सम्राट था जिसने अपने हितों की रक्षा के लिए युद्ध किया। कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एसके मुखर्जी की बेंच ने कहा कि, टीपू जयंती मनाने के पीछे क्या तर्क है? टीपू स्वतंत्रता सेनानी नहीं, बल्कि एक सम्राट था जिसने अपने हितों की रक्षा के लिए विरोधियों से जंग लड़ी थी।

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