बूँद-बूँद से घट भरने की कला, संचयिका
बूँद-बूँद से घट भरने की कला, संचयिका
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संचयिका का शाब्दिक अर्थ है बचत करना। पुरानी कहावत है कि बूँद-बूँद से ही घड़ा भरता है। इसी बात को चरितार्थ करने के लिए बच्चों में बचपन से बचत की प्रवृत्ति डालने के लिए ही हमारे देश में प्रति वर्ष 15 सितंबर को संचयिका दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसके लिए स्कूलों में बचत बढ़ाने के लिए इसे बैंक की भांति संचालित किया जाता है। लघु बचत को प्रोत्साहित करने के लिए यह योजना राष्ट्रीय बचत संस्थान के तहत संचालित की जाती है।

उल्लेखनीय है कि संचयिका के तहत छात्रों को अपनी कम उम्र में बचत करने की आदत डालने के साथ ही, उन्हें बैंकिंग परिचालनों को सिखाने के लिए बैंक खाते या डाक घर खाते खोलने की सलाह दी जाती है। आपको बता दें कि 1970 में, भारत सरकार द्वारा छात्रों के लिए राष्ट्रीय बचत के तहत संचायिका के रूप में जाने वाले स्कूल में बैंकिंग सुविधा उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया था। वस्तुतः संचयिका का मकसद स्कूली बच्चों में बचत को प्रोत्साहित करने के अलावा उन्हें बैंकिंग प्रणाली और अर्थ प्रबंधन की शिक्षा देना है।

जैसा कि पहले ही कहा गया है कि संचयिका का मतलब बचत या बचाने से है। बेशक आज के अर्थ प्रधान युग में धन की महत्ता बहुत है, ऐसे में धन की बचत के लिए संचयिका का अपना महत्त्व है, लेकिन मेरे मत में वर्तमान में पूरे दुनिया में बदले संदर्भों में संचयिका के साथ पर्यावरण, बेटी, जल और पृथ्वी को बचाने की कवायद को भी इसके साथ एकीकृत किया जाना चाहिए, क्योंकि धन की बचत के साथ ही इनको बचाने को भी ज़रूरत है।

बता दें कि धन से भी पहले जीने के लिए सांसें ज़रूरी है और सांसों के लिए पेड़ ज़रूरी है। इसी तरह प्रकृति का संतुलन बनाए रखने के लिए बेटियों को भी बचाने की ज़रूरत है, क्योंकि हमारे देश में स्त्री-पुरुष के लिंगानुपात में बहुत फर्क आ गया है। इसी तरह पानी की बर्बादी को भी रोकने के लिए बच्चों को बचपन से जल की महत्ता बताते हुए इसे बचाने की नसीहत दी जानी चाहिए. आखिर यह भी तो संचयिका की ही श्रेणी में आता है।

उल्लेखनीय है कि संचयिका दिवस पर देश भर में स्कूलों में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। जिसमें विद्यार्थियों और माता-पिता को उनकी बचत की आदतों को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करने की अपील की जाती है। ऐसे में मेरा सुझाव है कि हर वर्ष मनाए जाने वाले संचयिका दिवस पर बच्चों को धन की बचत की प्रेरणा देने के साथ ही पर्यावरण, बेटी, जल और पृथ्वी को बचाने की भी नसीहत देनी चाहिए. समय के साथ हमें  बचत के मायने बदलने ही होंगे, क्योंकि यही समय की मांग है।

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