नई दिल्ली: भारत के चंद्रयान-2 मिशन के तहत चांद पर उतरने से पहले वैज्ञानिकों से विक्रम लैंडर का संपर्क टूट गया. इसके बाद भी भारत ने चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास तक उसे पहुंचाकर ऐतिहासिक कार्य किया है. इससे पहले भारत के चंद्रयान-1 मिशन के दौरान भेजे गए शोध यान ने चांद की मिट्टी में पानी होने के साक्ष्य खोजे थे. इस पर पूरे विश्व ने भारत को सलाम किया था.
अब विक्रम लैंडर का संपर्क भले ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वैज्ञानिकों से टूट चुका हो, किन्तु चंद्रयान-2 ऑर्बिटर पूरे एक वर्ष चांद की कक्षा में मौजूद रहकर चांद पर अध्ययन करेगा. इसरो ने 22 अक्टूबर, 2008 को अपने पहले चांद मिशन के तहत चंद्रयान-1 को प्रक्षेपित किया था. इसे पीएसएलवी एक्सएल रॉकेट के माध्यम से प्रक्षेपित किया गया था.
इसके तहत एक ऑर्बिटर और एक इम्पैक्टर चांद की तरफ भेजे गए थे. ऑर्बिटर को चांद की कक्षा पर रहना था और इम्पैक्टर को चांद की सतह से टकराना था. चंद्रयान-1 ने 8 नवंबर, 2008 को चांद की कक्षा में प्रवेश किया था. इस मिशन की लाइफ दो वर्ष थी. इम्पैक्टर शोध यान 18 नवंबर, 2008 को ऑर्बिटर से अलग होकर चांद की सतह से टकराया था. यह चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास स्थित शेकलटन क्रेटर (गड्ढे) के पास उतरा था. चांद के जिस भाग पर यह टकराया था, उसे जवाहर प्वाइंट नाम दिया गया है.
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