छावला केसः तीनों दोषियों को बरी किए जाने के खिलाफ पुनर्विचार याचिका पर केंद्र की मंजूरी
छावला केसः तीनों दोषियों को बरी किए जाने के खिलाफ पुनर्विचार याचिका पर केंद्र की मंजूरी
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केंद्रीय कानून मंत्रालय ने आज यानी बुधवार को छावला गैंगरेप और मर्डर केस में तीनों दोषियों को बरी करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करने को लेकर मंजूरी दे दी है। जी दरअसल इससे पहले दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने बीते सोमवार को 2012 के छावला गैंगरेप और मर्डर केस में मौत की सजा पाने वाले तीन दोषियों को बरी करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दायर करने की मंजूरी दे दी थी। वहीं दिल्ली सरकार से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने दो दिन पहले बीते सोमवार को यह जानकारी दी थी कि उपराज्यपाल सक्सेना ने मामले में दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व करने के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की सेवाएं लेने की भी मंजूरी दे दी है।

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जी दरअसल अधिकारी का कहना है कि, “उपराज्यपाल ने तीनों आरोपियों को बरी करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने की मंजूरी दे दी है।” इसी के साथ उन्होंने यह भी जानकारी दी है कि शीर्ष अदालत द्वारा आरोपियों को बरी किए जाने के बाद पीड़िता के माता-पिता ने डर के चलते पुलिस सुरक्षा मांगी थी। आपको जानकारी दे दें कि इससे पहले दिल्ली की एक निचली अदालत ने द्वारका के छावला इलाके में 9 फरवरी 2012 को 19 साल की एक युवती के साथ गैंगरेप और मर्डर मामले में तीनों आरोपियों को मौत की सजा सुनाई थी। इस दौरान इसी को दिल्ली हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था। हालाँकि आरोपियों ने सजा के खिलाफ शीर्ष अदालत जाने का फैसला किया था जिसने सात नवंबर 2022 के अपने फैसले में निचली अदालत और हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया था।

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वहीं उसके बाद आरोपियों को बरी करने के फैसले की तीखी आलोचना हुई थी। इस मामले में महिला अधिकारी कार्यकर्ताओं ने कहा था कि इससे अभियुक्तों का हौसला बढ़ेगा। वहीं तीन आरोपियों को बरी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कानून अदालतों को किसी आरोपी को केवल संदेह के आधार पर दंडित करने की अनुमति नहीं देता है। वहीं उसके बाद शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी करते हुए यह भी कहा था कि, 'अगर जघन्य अपराध में शामिल अभियुक्तों को सजा नहीं मिलती है या उन्हें बरी कर दिया जाता है तो आम स्तर पर समाज और विशेष रूप से पीड़ित के परिवार के लिए एक प्रकार की पीड़ा और हताशा हो सकती है।'

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इसी के साथ पीठ ने कहा था कि अभियोजन पक्ष अभियुक्तों के खिलाफ डीएनए प्रोफाइलिंग और कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) सहित अन्य मामलों में ठोस, निर्णायक और स्पष्ट साक्ष्य पेश करने में नाकाम रहा। इसी के साथ उसने कहा था कि निचली अदालत ने भी मामले में एक निष्क्रिय अंपायर के रूप में काम किया। आपको बता दें कि अभियोजन पक्ष ने कहा था कि युवती उत्तराखंड की रहने वाली थी और गुरुग्राम के साइबर सिटी में काम करती थी। जिस दौरान वह कार्यस्थल से लौट रही थी और अपने घर के पास पहुंची ही थी कि तीन लोगों ने एक कार में उसका अपहरण कर लिया। उसके बाद अभियोजन पक्ष ने कहा था कि जब युवती घर नहीं लौटी तो उसके परिजनों ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई।

उसने बताया था कि इसके बाद हरियाणा के रेवाड़ी में युवती का क्षत-विक्षत शव सड़ी-गली हालत में बरामद हुआ था। पुलिस को युवती के शव पर जख्म के कई निशान मिले थे। इस मामले में अभियोजन पक्ष ने कहा था कि आगे की जांच और शव के पोस्टमॉर्टम से पता चला कि युवती पर कार के औजारों, कांच की बोतलों, धातु की वस्तुओं और अन्य हथियारों से हमला किया गया था और उसके साथ बलात्कार भी हुआ था। आपको बता दें कि पुलिस ने अपराध में शामिल तीन लोगों को गिरफ्तार किया था और कहा था कि, 'इनमें से एक आरोपी ने युवती द्वारा उसके प्रेम प्रस्ताव को ठुकराए जाने के बाद कथित तौर पर उससे बदला लेने के लिए ऐसा किया था।'

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