नई दिल्ली: दिनों दिन बढ़ते जा रहे अपराध और जुर्म से आज हर कोई परेशान है वहीं पिछले साल 11 लोगों की आत्महत्या के बाद डर, रहस्य और अंधविश्वास के कारण खाली हुआ बुराड़ी का चर्चित घर एक बार फिर से आबाद हो गया है. वहीं इस घर में एक परिवार आन बसा है. घर के मालिक डॉ. मोहन सिंह का कहना है कि मुझे कोई समस्या नहीं है और यह सुविधाजनक है क्योंकि यह घर सड़क के नजदीक है. वे कहते हैं कि मैं अंधविश्वासी नहीं हूं. दरअसल, बुराड़ी में एक साथ 11 लोगों के सामूहिक आत्महत्या कांड के बाद घर पर ऐसा दाग लगा कि लोग उसके सामने से गुजरने से भी कतराने लगे. वारदात के बाद से न तो कोई इस मकान को खरीदने के लिए तैयार था और न ही कोई इसे किराए पर लेना चाहता था. मोहन सिंह कश्यप ने दिनेश सिंह चूंडावत के मकान को 25 हजार रुपये महीना किराए पर लिया है.
Delhi: A family has moved in at the house in Burari, where 11 members of a family committed suicide in July, 2018. Dr Mohan Singh, who has moved in at the house says, "I have no problem with it, this house is convenient as it is near the road. I am not superstitious". (29.12.19) pic.twitter.com/jVZzAhFLlB
ANI December 29, 2019
सूत्रों का कहना है कि मूल रूप से उत्तराखंड के रुद्रपुर के रहने वाले मोहन सिंह का परिवार फिलहाल उत्तर-पूर्वी दिल्ली के भजनपुरा इलाके में रहता था. इनके परिवार में पत्नी कृष्णा देवी, 11 और 5 साल की दो बेटियां, 8 साल का बेटा और भाई सोनू (26) हैं. कई साल से मोहन सिंह बुराड़ी इलाके में ध्रुव पैथोलॉजी के नाम से अपनी लैब चलाते हैं. उनके तीनों बच्चे बुराड़ी के नालंदा पब्लिक स्कूल में पढ़ते हैं. मोहन सिंह का कहना है कि वह किसी अंधविश्वास को नहीं मानते.
वहीं जब उनसे इस बारें में बात कि गई तो उन्होंने बताया कि नवंबर माह में उन्होंने मकान देखा और उसे लेने का मन बना लिया. हालांकि, कई लोगों ने उनसे मकान नहीं लेने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने और उनके परिवार ने मन बना लिया था. मोहन का कहना है कि उनके बच्चे इस मकान से पहले से परिचित हैं. उनके बच्चे ललित की बहन प्रतिभा की बेटी प्रियंका से ट्यूशन पढ़ने जाते थे. 11 लोगों की आत्महत्या के बाद पुलिस ने कई माह तक जांच के लिए मकान को सील करके रखा. बाद में इकलौते बचे वारिस ललित और भूपी के भाई दिनेश सिंह चूंडावत को मकान सौंप दिया गया. इसके बाद से ही दिनेश मकान को बेचने या किराए पर देने के प्रयास कर रहे थे, लेकिन कोई तैयार नहीं हुआ. मशक्कत के बाद अब डेढ़ साल में पहली बार दिनेश को किराएदार मिला है.
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