देश के खातिर जरूरी है परंपरा में बदलाव
देश के खातिर जरूरी है परंपरा में बदलाव
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भारत देश प्राचीन परंपराओं का देश है। इतिहास गवाह है कि समय और परिस्थितियों के अनुसार परंपराओं में बदलाव आता रहा है या फिर पुरानी परंपरा को पूरी तरह से समाप्त कर नई परंपरा को भी कायम किया जाता रहा है। चाहे सामाजिक परंपरा हो या फिर  अन्य संदंर्भित परंपराएं ही क्यों न हो, समय के मान से बदलाव या परिवर्तन अवश्यंभावी है।

हाल ही में हमारी केन्द्र की मोदी सरकार ने 92 वर्ष की उस परंपरा को तोड़ दिया है, जो रेल बजट से जुड़ी हुई थी। लेकिन यह कहने में बिल्कुल भी गुरेज नहीं है कि यदि देश हित के खातिर किसी परंपरा को तोड़ा जाये या बदलाव किया जाये तो भी कोई बुराई नहीं है। देश के सभी नागरिक इस बात से अवगत है कि अभी तक जितनी भी सरकार रही है उन्होंने पहले रेल बजट और फिर आम बजट को पेश किया है।

मोदी सरकार ने भी अपने प्राथमिक कार्यकाल में दोनों ही बजटों को अलग-अलग ही पेश किया है, लेकिन अब सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुये रेल बजट को आम बजट में मर्ज कर दिया। सरकार के इस निर्णय का विरोध भले ही विपक्षियों ने शुरू कर दिया हो लेकिन सरकार का यह फैसला इसलिये भी महत्वपूर्ण होगा क्योंकि एक तो सरकार के ही रेल मंत्रालय को दस हजार करोड का फायदा होगा और दूसरा बजट को अलग-अलग बनाने वालों का समय बचेगा तो वहीं दिमाग को भी एक ही जगह खपाना पड़ेगा। रही बात जनता की तो एक ही बजट में सब कुछ सामने आ जायेगा।

कहा जाता है कि व्यक्ति का दिमाग एक ही जगह टिका रहकर कार्य करें तो काम भी अच्छा होता है और समय भी कम लगता है, वस्तुतः बजट के मामले में आगे ऐसा ही होगा, इसमें किसी तरह की शंका नहीं होना चाहिये। मोदी सरकार ने बजट के मामले में परंपरा को तोड़ने का कार्य किया है, लेकिन देश के इतिहास को उठाकर देखा जाये तो ऐसी कई परंपराओं में बदलाव आ चुका है, जो समय और परिस्थिति के अनुसार जरूरी था।

कहते है कि जो व्यक्ति समय के साथ अपने कदम मिलाता है वहीं सफल होता है, संभवतः मोदी सरकार ने भी यही सोचकर इतना बड़ा निर्णय लिया है। जनता भी एक ही समय में एक ही बजट में महंगाई या सस्ताई की जानकारी लेना चाहती है, इसलिये यह नहीं महसूस होता है कि जनता को एक ही बजट को लेकर कोई परेशानी होगी। वैसे भी देश है तो बजट भी एक ही होता है तो भी परेशानी की बात नहीं।

मोदी सरकार ने तोड़ी परंपरा, आम में मिलेगा रेल बजट

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