जोधपुर: हम सब जानते हैं कि शादी के लिए लड़की और लड़के की न्यूनतम उम्र में तीन साल अंतर का प्रावधान हैं. उम्र के कानूनन अंतर पर हाईकोर्ट में नई बहस शुरू हो चुकी है. वही एक वकील ने जनहित याचिका में इस अंतर को भेदभावपूर्ण और रूढ़ीवादी ठहराया हैं. वही इस मामले पर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इंद्रजीत महांति और डॉ. जस्टिस पीएस भाटी की खंडपीठ ने याचिका काे स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार, राज्य सरकार और केंद्रीय विधि आयोग को नोटिस जारी कर दिया गया हैं. वही इस मामले पर छह सप्ताह में जवाब मांगा है.
इस याचिकाकर्ता अब्दुल मन्नान ने याचिका में बताया है कि लड़के को 21 साल की उम्र तक शादी की अनुमति दी जाती है, वही लड़की को महज 18 साल की उम्र में विवाह के योग्य माना जाता हैं. तो यह एक गलत नियम है. इस अंतर के पीछे कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. वही न्यूनतम उम्र में यह भेद रूढ़ीवादिता को दर्शाता हैं. उन्होंने तर्क दिया कि यह संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के अतिरिक्त लैंगिक समानता, लैंगिक न्याय और महिलाओं के सम्मान के भी खिलाफ माना जाता है.
यदि दुनिया के 125 देशों में शादी के लिए लड़के व लड़की की उम्र एक समान रखी गई है. तो हमारे देश में इस तरह का भेदभाव आखिर क्यों देखने को मिल रहा हैं. वही मन्नान ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और डब्ल्यूएचओ आदि द्वारा किए गए मेडिकल रिसर्च को पेश करते हुए बताया कि यदि लड़की कम उम्र में मां बनती है तो उसकी बायोलॉजिकल उम्र कम होना जाहिर सी बात हैं. इस मामले पर हाईकोर्ट में एक नई बहस शुरू हो गई हैं.
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