मुंबई : ओशो की वसीयत को तलाशने के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई पुलिस को आदेश दिया है कि वो इस संबंध में यूरोपियन यूनियन को खत लिखे। ओशो के एक शिष्य ने अदालत में उनकी वसीयत की सत्यता को चैलेंज करने के लिए याचिका दी थी। शिष्य योगेश ठक्कर ने 2013 में पुणे के कोरेगांव पुलिस स्टेशन में 6 प्रशासकों के खिलाफ मामला दर्ज कराया था।
अपनी शिकायत में ठक्कर ने कहा कि 2013 में जिस वसीयत को यूरोपियन कोर्ट में पेश किया गया था, वह ओशो ने नहीं किया था। बॉम्बे हाईकोर्ट की पीठ जस्टिस नरेश पाटिल और प्रकाश नायक को सुनवाई के दौरान ठक्कर के वकील ने बताया कि ओशो की मौत के 23 वर्ष बाद इस वसीयत को यूरोपियन कोर्ट में पेश किया गया, जबकि उनकी मौत भारत में ही हुई थी।
जिनके खिलाफ मामला दर्ज कराया गया है, उनके पास ओशो की पेटिंग, ऑडियो, वीडियो व किताबों का अधिकार है। इन चीजों से करोड़ों में कमाई होती है। सरकारी वकील संगीता शिंदे ने कोर्ट में कहा कि 2013 में किताबों और वसीयत में मौजूद दस्तख्त के मिलान के लिए इसे राइटिंग एक्सपर्ट के पास भेजा गया था।
ओशो के केयर टेकर एलेक्जेंडर अलिशा के पास उनकी वसीयत की असली प्रति का फटा हुआ हिस्सा मौजूद है और फिलहाल इसकी एक डुप्लीकेट कॉपी यहां पर भी मौजूद है। ठक्कर के वकील ने कोर्ट में कहा कि 2013 में जर्मनी के एक पब्लिक नोटेरी डॉक्टर स्टीफन द्वारा अटेस्ट किया गया है। उन्होने कहा कि इसके लिए ब्रिटेन से मदद मांगी जानी चाहिए।
वकील ने कोर्ट में कहा कि उन्होंने आरबीआई और ईडी को भी इस बाबत लिखा है और देश का धन विदेशों में भेजे जाने की जानकारी दी है। उन्होंने इस मामले की जांच सीबीआई से करवाने की भी मांग की है।